गजानन माधव 'मुक्तिबोध' (13नवंबर 1917 - 11 सितंबर 1964) हिन्दी साहित्य की स्वातंत्र्योत्तर प्रगतिशील काव्यधारा के शीर्ष व्यक्तित्व थे। हिन्दी साहित्य में सर्वाधिक चर्चा के केन्द्र में रहने वाले मुक्तिबोध कहानीकार भी थे और समीक्षक भी। उन्हें प्रगतिशील कविता और नयी कविता के बीच का एक सेतु भी माना जाता है। इनके पिता पुलिस विभाग के इंस्पेक्टर थे और उनका तबादला प्रायः होता रहता था। इसीलिए मुक्तिबोध जी की पढाई में बाधा पड़ती रहती थी। सन 1930 में मुक्तिबोध ने मिडिल की परीक्षा, उज्जैन से दी और फेल हो गए। कवि ने इस असफलता को अपने जीवन की महत्त्वपूर्ण घटना के रूप में स्वीकार किया है। उन्होंने 1953 में साहित्य रचना का कार्य प्रारम्भ किया और सन 1939 में इन्होने शांता जी से प्रेम विवाह किया। 1942 के आस-पास वे वामपंथी विचारधारा की ओर झुके तथा शुजालपुर में रहते हुए उनकी वामपंथी चेतना मजबूत हुई। मुक्तिबोध तारसप्तक के पहले कवि थे। मनुष्य की अस्मिता, आत्मसंघर्ष और प्रखर राजनैतिक चेतना से समृद्ध उनकी कविता पहली बार 'तार सप्तक' के माध्यम से सामने आई, लेकिन उनका कोई स्वतंत्र काव्य-संग्रह उनके जीवनकाल में प्रकाशित नहीं हो पाया। मृत्यु के पहले श्रीकांत वर्मा ने उनकी केवल 'एक साहित्यिक की डायरी' प्रकाशित की थी, जिसका दूसरा संस्करण भारतीय ज्ञानपीठ से उनकी मृत्यु के दो महीने बाद प्रकाशित हुआ।
ज्ञानपीठ ने ही 'चाँद का मुँह टेढ़ा है' प्रकाशित किया था। इसी वर्ष नवंबर 1964 में नागपुर के विश्वभारती प्रकाशन ने मुक्तिबोध द्वारा 1963 में ही तैयार कर दिये गये निबंधों के संकलन नयी कविता का आत्मसंघर्ष तथा अन्य निबंध' को प्रकाशित किया था। परवर्ती वर्षो में भारतीय ज्ञानपीठ से मुक्तिबोध के अन्य संकलन 'काठ का सपना', तथा 'विपात्र' (लघु उपन्यास) प्रकाशित हुए। पहले कविता संकलन के 15 वर्ष बाद, 1980 में उनकी कविताओं का दूसरा संकलन 'भूरी भूर खाक धूल' प्रकाशित हुआ और 1985 में 'राजकमल' से पेपरबैक में छ: खंडों में 'मुक्तिबोध रचनावली' प्रकाशित हुई, वह हिंदी के इधर के लेखकों की सबसे तेजी से बिकने वाली रचनावली मानी जाती है।
इसके बाद मुक्तिबोध पर शोध और किताबों की भी झड़ी लग गयी। 1975 में प्रकाशित अशोक चक्रधर का शोध ग्रंथ 'मुक्तिबोध की काव्यप्रक्रिया' इन पुस्तकों में प्रमुख था। कविता के साथ-साथ, कविता विषयक चिंतन और आलोचना पद्धति को विकसित और समृद्ध करने में भी मुक्तिबोध का योगदान अन्यतम है। उनके चिंतन परक ग्रंथ हैं- एक साहित्यिक की डायरी, नयी कविता का आत्मसंघर्ष और नये साहित्य का सौंदर्य शास्त्र। भारत का इतिहास और संस्कृति इतिहास लिखी गई उनकी पुस्तक है। काठ का सपना तथा सतह से उठता आदमी उनके कहानी संग्रह हैं तथा विपात्रा उपन्यास है। उन्होंने 'वसुधा', 'नया खून' आदि पत्रों में संपादन-सहयोग भी किया। मुक्तिबोध मूलत: कवि हैं। उनकी आलोचना उनके कवि व्यक्तित्व से ही नि:सृत और परिभाषित है। वही उसकी शक्ति और सीमा है। उन्होंने एक ओर प्रगतिवाद के कठमुल्लेपन को उभार कर सामने रखा, तो दूसरी ओर नयी कविता की ह्रासोन्मुखी प्रवृत्तियों का पर्दाफ़ाश किया। यहाँ उनकी आलोचना दृष्टि का पैनापन और मौलिकता असन्दिग्ध है। उनकी सैद्धान्तिक और व्यावहारिक समीक्षा में तेजस्विता है। जयशंकर प्रसाद,शमशेर, कुँवर नारायण जैसे कवियों की उन्होंने जो आलोचना की है, उसमें पर्याप्त विचारोत्तेजकता है और विरोधी दृष्टि रखने वाले भी उनसे बहुत कुछ सीख सकते हैं। काव्य की सृजन प्रक्रिया पर उनका निबन्ध महत्त्वपूर्ण है। ख़ासकर फैण्टेसी का जैसा विवेचन उन्होंने किया है, वह अत्यन्त गहन और तात्विक है। उन्होंने नयी कविता का अपना शास्त्र ही गढ़ डाला है। पर वे निरे शास्त्रीय आलोचक नहीं हैं। उनकी कविता की ही तरह उनकी आलोचना में भी वही चरमता है, ईमान और अनुभव की वही पारदर्शिता है, जो प्रथम श्रेणी के लेखकों में पाई जाती है। उन्होंने अपनी आलोचना द्वारा ऐसे अनेक तथ्यों को उद्घाटित किया है, जिन पर साधारणत: ध्यान नहीं दिया जाता रहा।उनकी कुछ अत्यन्त महत्त्वपूर्ण कृतियाँ यहीं लिखी गईं। उनकी कृतियों के नाम इस प्रकार है : -
कहानी : -
अँधेरे में
क्लॉड ईथरली
काठ का सपना
जंक्शन
पक्षी और दीमक
प्रश्न
ब्रह्मराक्षस का शिष्य
लेखन
विपात्र
सौन्दर्य के उपासक
अँधेरे में
एक अंतःकथा
एक भूतपूर्व विद्रोही का आत्म-कथन
एक स्वप्न कथा
चाँद का मुँह टेढ़ा है
जब प्रश्न चिह्न बौखला उठे
दिमागी गुहांधकार का औरांग उटांग
ब्रह्मराक्षस
भूल-ग़लती
मैं उनका ही होता
कविताएँ : -
मैं तुम लोगों से दूर हूँ
मुझे क़दम-क़दम पर
मुझे पुकारती हुई पुकार
मुझे मालूम नहीं
मुझे याद आते हैं
मेरे लोग
शून्य
जब दुपहरी ज़िंदगी पर (अप्रकाशित कविता)