आशा पारेख (2 अक्टूबर, 1942, महुआ, गुजरात) भारतीय हिन्दी फ़िल्मों की प्रसिद्ध अभिनेत्री, निर्देशक और निर्माता हैं। वह 1959 से 1973 तक हिन्दी फ़िल्मों की शीर्ष अभिनेत्रियों में से एक रही हैं। 60 के दशक में अपनी अभिनय प्रतिभा से सभी को अचम्भित कर देने वाली अभिनेत्री आशा पारेख ने शम्मी कपूर, शशि कपूर, धर्मेन्द्र,देवानंद, अशोक कुमार, सुनील दत्त और राजेश खन्ना जैसे मंझे हुए कलाकारों के साथ काम किया। अपने लम्बे फ़िल्मी कैरियर में आशा पारेख ने विभिन्न भूमिकाएँ निभाईं। संजीदा अभिनेत्री के तौर पर अपनी एक अलग पहचान बनाने वाली आशा पारेख को शास्त्रीय नृत्य में भी दक्षता प्राप्त हैं। आशा पारेख का जन्म 2 अक्टूबर, 1942 को एक मध्यम वर्गीय गुजराती परिवार में हुआ था।उनके पिता हिन्दू और माता मुस्लिम थीं। इनकी माता एक सामाजिक कार्यकर्ता और आज़ादी के आन्दोलन में सक्रिय थीं। आशा पारेख का पारिवारिक माहौल बेहद धार्मिक था। विभिन्न धर्मों से संबंध होने के बावजूद उनके माता-पिता साईं बाबा के भक्तथे। छोटी-सी आयु में ही आशा जी भारतीय शास्त्रीय संगीत सीखने लगी थीं। बचपन से ही आशा जी को नृत्य का बेहद शौक़ था। बाद में उनकी माँ ने कथक नर्तक मोहनलाल पाण्डे से उन्हें प्रशिक्षण दिलवाया। बड़ी होने पर पण्डित गोपीकृष्ण तथा पण्डित बिरजू महाराज से 'भरतनाट्यम' में भी उन्होंने कुशलता प्राप्त की।
फ़िल्मी कैरियर
आशा पारेख ने फ़िल्म 'आसमान' (1952) में एक बाल कलाकार के रूप कार्य करके अपने फ़िल्मी कैरियर को शुरू किया। इस फ़िल्म के बाद से उन्हें 'बेबी आशा पारेख' के रूप में पहचान मिलने लगी। एक स्टेज प्रोग्राम में आशा पारेख के नृत्य से प्रभावित होकर निर्देशक विमल रॉय ने बारह वर्ष की आयु में आशा पारेख को अपनी फ़िल्म 'बाप-बेटी' में ले लिया। इस फ़िल्म को कुछ ख़ास सफलता प्राप्त नहीं हुई। इसके अलावा उन्होंने और भी कई फ़िल्मों में बाल कलाकार की भूमिका निभाई। आशा पारेख ने फ़िल्मी दुनियाँ में कदम रखते ही स्कूल जाना छोड़ दिया था। सोलह वर्ष की आयु में आशा पारेख ने दोबारा फ़िल्मी जगत में जाने का निर्णय लिया, लेकिन फ़िल्म 'गूँज उठी शहनाई' के निर्देशक विजय भट्ट ने आशा जी की अभिनय प्रतिभा को नजरअंदाज करते हुए उन्हें फ़िल्म में लेने से इनकार कर दिया। लेकिन अगले ही दिन फ़िल्म निर्माता सुबोध मुखर्जी और लेखक-निर्देशक नासिर हुसैन ने अपनी आगामी फ़िल्म 'दिल देके देखो' में आशा पारेख को शम्मी कपूर की नायिका की भूमिका में चुन लिया। यह फ़िल्म आशा पारेख और नासिर हुसैन को एक दूसरे के काफ़ी नजदीक ले आई थी। नासिर हुसैन ने उन्हें अपनी अगली छ: फ़िल्मों, 'जब प्यार किसी से होता है', 'फिर वही दिल लाया हूँ', 'तीसरी मंजिल', 'बहारों के सपने', 'प्यार का मौसम' और 'कारवाँ' में भी नायिका की भूमिका में रखा।
मुख्य फ़िल्में
आशा पारेख ने अपने लम्बे फ़िल्मी सफर में असंख्य भूमिकाएँ निभाई हैं। उनकी कुछ प्रमुख फ़िल्मों के नाम इस प्रकार हैं -
- दिल दे के देखो - 1959
- घूंघट - 1960
- जब प्यार किसी से होता है - 1961
- घराना - 1961
- छाया - 1961
- फिर वही दिल लाया हूँ - 1963
- मेरे सनम - 1965
- तीसरी मंज़िल - 1966
- लव इन टोक्यो - 1966
- आये दिन बहार के - 1966
- उपकार - 1967
- कन्यादान - 1969
- आया सावन झूम के - 1969
- कटी पतंग - 1970
- आन मिलो सजना - 1970
- मेरा गाँव मेरा देश - 1971
- मैं तुलसी तेरे आंगन की - 1978
- बिन फेरे हम तेरे - 1979
- कालिया - 1981
- मंजिल मंज़िल - 1984
- हमारा खानदान - 1988
- हम तो चले परदेस - 1988
- बँटवारा - 1989
- घर की इज्जत - 1994
- आंदोलन - 1995
निर्देशन का कार्य
आशा पारेख ने 1990 में गुजराती सीरियल 'ज्योती' के साथ टेलिविजन निर्देशन के क्षेत्र में भी कदम रखा। 'आकृति' नामक प्रोडक्शन कंपनी की स्थापना करने के बाद आशा जी ने 'कोरा कागज', 'पलाश के फूल', 'बाजे पायल' जैसे सीरियल का निर्माण किया। 1994 से 2001 तक आशा पारेख सिने आर्टिस्ट एसोसिएशन की अध्यक्षा और1998-2001 तक 'केन्द्रीय सेंसर बोर्ड' की पहली महिला चेयर परसन रहीं।
पुरस्कार व सम्मान
आशा पारेख को फ़िल्म 'कटी पतंग' के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का 'फ़िल्म फेयर अवार्ड' (1970), 'पद्मश्री अवार्ड' (1992), 'लाइफ़ टाइम अचीवमेंट अवार्ड' (2002) में प्राप्त हुआ। इसके अतिरिक्त भारतीय फ़िल्मों में उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए उन्हें 'अंतरराष्ट्रीय भारतीय फ़िल्म अकादमी सम्मान' (2006), भारतीय वाणिज्य और उद्योग मंडल महासंघ (फिक्की) द्वारा 'लिविंग लेजेंड सम्मान' भी दिया गया।