सुप्रसिद्ध कवि रामकुमार वर्मा - Study Search Point

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सुप्रसिद्ध कवि रामकुमार वर्मा

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रामकुमार वर्मा (Ram Kumar Verma, 15 सितंबर1905 -  1990) आधुनिक हिन्दी साहित्य में 'एकांकी सम्राट' के रूप में जाने जाते हैं। डॉ. रामकुमार वर्मा हिन्दी भाषा के सुप्रसिद्ध साहित्यकार, व्यंग्यकार और हास्य कवि के रूप में जाने जाते हैं। रामकुमार वर्मा की हास्य और व्यंग्य दोनों विधाओं में समान रूप से पकड़ है। नाटककार और कवि के साथ-साथ उन्होंने समीक्षक, अध्यापक तथा हिन्दी-साहित्य के इतिहास-लेखक के रूप में भी हिन्दी साहित्य-सर्जन में अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। रामकुमार वर्मा एकांकीकार, आलोचक और कवि हैं। इनके काव्य में 'रहस्यवाद' और 'छायावाद' की झलक है।

जीवन परिचय

डॉ. रामकुमार वर्मा का जन्म मध्यप्रदेश के सागर ज़िले में 15 सितंबर सन् 1950 ई. में हुआ। इनके पिता लक्ष्मी प्रसाद वर्मा डिप्टी कलैक्टर थे। वर्माजी को प्रारम्भिक शिक्षा इनकी माता श्रीमती राजरानी देवी ने अपने घर पर ही दी, जो उस समय की हिन्दी कवयित्रियों में विशेष स्थान रखती थीं। बचपन में इन्हें "कुमार" के नाम से पुकारा जाता था। रामकुमार वर्मा में प्रारम्भ से ही प्रतिभा के स्पष्ट चिह्न दिखाई देते थे। ये सदैव अपनी कक्षा में प्रथम आया करते थे। पठन-पाठन की प्रतिभा के साथ ही साथ रामकुमार वर्मा शाला के अन्य कार्यों में भी काफ़ी सहयोग देते थे। अभिनेता बनने की रामकुमार वर्मा की बड़ी प्रबल इच्छा थी। अतएव इन्होंने अपने विद्यार्थी जीवन में कई नाटकों में एक सफल अभिनेता का कार्य किया है। रामकुमार वर्मा सन् 1922 ई. में दसवीं कक्षा में पहुँचे। इसी समय प्रबल वेग से असहयोग की आँधी उठी और रामकुमार वर्मा राष्ट्र सेवा में हाथ बँटाने लगे तथा एक राष्ट्रीय कार्यकर्ता के रूप में जनता के सम्मुख आये। इसके बाद वर्माजी ने पुनः अध्ययन प्रारम्भ किया और सब परीक्षाओं में सफलता प्राप्त करते हुए प्रयाग विश्वविद्यालय से हिन्दी विषय में एम. ए. में सर्वप्रथम आये। रामकुमार वर्मा ने नागपुर विश्वविद्यालय की ओर से 'हिन्दी साहित्य का आलोचनात्मक इतिहास' पर पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। अनेक वर्षों तक रामकुमार वर्मा प्रयाग विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में प्राध्यापक तथा फिर अध्यक्ष रहे हैं।

रामकुमार वर्मा आधुनिक हिन्दी साहित्य के सुप्रसिद्ध कवि, एकांकी नाटक-लेखक और आलोचक हैं। "चित्ररेखा" काव्य-संग्रह पर इन्हें हिन्दी का सर्वश्रेष्ठ "देव पुरस्कार" मिला है। साथ ही "सप्त किरण" एकांकी संग्रह पर अखिल भारतीय साहित्य सम्मेलन पुरस्कार और मध्यप्रदेशशासन परिषद से "विजयपर्व" नाटक पर प्रथम पुरस्कार मिला है। रामकुमार वर्मा रूसी सरकार के विशेष आमंत्रण पर मास्को विश्वविद्यालय के अंतर्गत प्रायः एक वर्ष तक शिक्षा कार्य कर चुके हैं। हिन्दी एकांकी के जनक रामकुमार वर्मा ने ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, मनोवैज्ञानिक, सामाजिक और साहित्यिक विषयों पर 150 से अधिक एकांकी लिखीं। भगवतीचरण वर्मा ने कहा था, "डॉ. रामकुमार वर्मारहस्यवाद के पंडित हैं। उन्होंने रहस्यवाद के हर पहलू का अध्ययन किया है। उस पर मनन किया है। उसको समझना हो और उसका वास्तविक और वैज्ञानिक रूप देखना हो तो उसके लिए श्री वर्मा की ‘चित्ररेखा’ सर्वश्रेष्ठ काव्य ग्रंथ होगा।

कृतियाँ

रूस में रामकुमार वर्मा की रचनाएँ सन् 1922 ई. से प्रारम्भ हुईं। इनकी कृतियाँ इस प्रकार हैं : -
  1. 'वीर हमीर' (काव्य-सन 1922 ई.)
  1. 'चित्तौड़ की चिंता' (काव्य सन् 1929 ई.)
  2. 'साहित्य समालोचना' (सन 1929 ई.)
  3. 'अंजलि' (काव्य-सन 1930 ई.)
  4. 'अभिशाप' (कविता-सन 1931 ई.)
  5. 'हिन्दी गीतिकाव्य' (संग्रह-सन 1931 ई.)
  6. 'निशीथ' (कविता-सन 1935 ई.)
  7. चित्ररेखा' (कविता-सन 1936 ई.)
  8. 'पृथ्वीराज की आँखें' (एकांकी संग्रह-सन 1938 ई.)
  9. 'कबीर पदावली' (संग्रह सम्पादन-सन 1938 ई.)
  10. 'हिन्दी साहित्य का आलोचनात्मक इतिहास' (सन 1939 ई.)
  11. 'आधुनिक हिन्दी काव्य' (संग्रह सम्पादन-सन 1939 ई.)
  12. 'जौहर' (कविता संग्रह- 1941 ई.)
  13. 'रेशमी टाई' (एकांकी संग्रह-सन 1941 ई.)
  14. 'शिवाजी' (सन 1943 ई.)
  15. 'चार ऐतिहासिक एकांकी' (संग्रह-सन 1950 ई.)
  16. 'रूपरंग' (एकांकी संग्रह-सन 1951 ई.)
  17. 'कौमुदी महोत्सव'

ऐतिहासिक नाटक

  1. 'एकलव्य'
  2. 'उत्तरायण'
  3. 'ओ अहल्या'
डॉ. वर्मा का कवि-व्यक्तित्व द्विवेदीयुगीन प्रवृत्तियों से उदित होकर छायावाद क्षेत्र में मूल्यवान उपलब्धि सिद्ध हुआ। इनकी काव्यगत विशेषताओं में कल्पनावृत्ति, संगीतात्मकता, रहस्यमय सौन्दर्य-दृष्टि (रहस्यवाद) का स्थान अनन्य है। छायावादकाल की कविताएँ इनकी कवि प्रतिभा का सुन्दर प्रतिनिधित्व करती हैं। हिन्दी रहस्यवाद के क्षेत्र में इनकी अपनी विशेष देन है। अपनी रहस्यवादी कृतियों में इन्होंने प्रकृति और मानवीय हृदय के सूक्ष्म तत्त्वों, जिनमें अलौकिक सत्ता का अबाध प्रकाश है, बहुत बड़ा सहारा लिया है। इन्होंने प्रकृति की विराट सत्ता में सर्वत्र ईश्वरीय संकेत की अनुभूति की है। इस प्रकार जहाँ इन्होंने अपने इस धरातल के काव्य-जगत में एक ओर मानव आत्मा की सफल प्रेममय प्रवृत्तियों की थाह ली है, वहाँ उन्होंने प्रकृति के रहस्यों का भी सफल अंवेषण किया है। सर्वत्र भावना क्षेत्र में तद्विषयक अभिव्यक्ति के लिए प्रायः रूपकों का सहारा लिया है, जिनमें एक ओर आध्यात्मिक संकेत हैं और दूसरी ओर एक अलौकिक व्यंजना।

हिंदी एकांकी के जनक

हिंदी की लघु नाट्य परंपरा को एक नया मोड़ देने वाले डॉ. रामकुमार वर्मा आधुनिक हिंदी साहित्य में ‘एकांकी सम्राट्’ के रूप में समादृत हैं। उन्होंने हिंदी नाटक को एक नया संरचनात्मक आदर्श सौंपा। नाट्य कला के विकास की संभावनाओं के नए पाट खोलते हुए नाट्य साहित्य को जन जीवन के निकट पहुँचा दिया। नाटककार और कवि के साथ-साथ उन्होंने समीक्षक, अध्यापक तथा हिंदी साहित्येतिहास-लेखक के रूप में भी हिंदी साहित्य-सृजन में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। नाटककार के रूप में उन्होंने मनोविज्ञान के अनेकानेक स्तरों पर मानव-जीवन की विविध संवेदनाओं को स्वर दिया तो छाया वादी कवियों की कतार में खड़े होकर रहस्य और अध्यात्म की पृष्ठभूमि में अपने काव्यात्मक संस्कारों को विकसित कर रहस्यमयी जगत् के स्वप्नों में सहृदय को प्रवेश कराया। डॉ. वर्मा के साहित्यिक व्यक्तित्व को नाटककार और कवि के रूप में अधिक प्रमुखता मिली सन् 1930 में रचित ’बादल की मृत्यु’ उनका पहला एकांकी है, जो फेंटेसी के रूप में अत्यंत लोकप्रिय हुआ। भारतीय आत्मा और पाश्चात्य तकनीक के समन्वय से उन्होंने हिंदी एकांकी कला को निखार दिया। उन्होंने ऐतिहासिक और सामाजिक दो तरह के एकांकी नाटकों की सृष्टि की। ऐतिहासिक नाटकों में उन्होंने भारतीय इतिहास से स्वर्णिम पृष्ठों से नाटकों की विषय-वस्तु को ग्रहण कर चरित्रों की ऐसी सुदृढ़ रूप रेखा प्रस्तुत की जो पाठकों में उच्च चारित्रिक संस्कार भर सके और सामयिक जीवन की समस्याओं को समाधान की दिशा दे सके। उनके नाटक भारतीय संस्कृति और राष्ट्रीय उद्बोधन के स्वर बखूबी समेटे हुए हैं। गर्व के साथ वे कहते हैं, ’ऐतिहासिक एकांकियों में भारतीय संस्कृति का मेरुदंड-नैतिक मूल्यों में आस्था और विश्वास का दृष्टिकोण प्रस्तुत किया गया है।’ उनके सामाजिक एकांकी प्रेम और सेक्स की समस्याओं से संबंधित हैं। ये एकांकी मानसिक अंतर्द्वंद की आधार भूमि पर यथार्थवादी कलेवर में समाज और जीवन की वस्तु-स्थिति तक पहुँचते हैं।

पुरस्कार

रामकुमार वर्मा को उपन्यास "चित्ररेखा" पर देव पुरस्कार एवं एकांकी संग्रह पर अखिल भारतीय साहित्य सम्मेलन पुरस्कार मिला। इनको भारत सरकार द्वारा पद्म भूषण अलंकरण से विभूषित किया गया। उनके कृतित्व से प्रभावित होकर स्विट्जरलैंड के मूर विश्वविद्यालय ने उन्हें डी.लिट की उपाधि से सम्मानित किया।

स्मरणीय तथ्य

  1. 15 सितंबर, 1905 को जन्मे डॉ. रामकुमार वर्मा की कविता, संगीत और कलाओं में गहरी रुचि थी।
  2. 1921 तक आते-आते युवक रामकुमार गाँधी जी के उनके असहयोग आंदोलन में सम्मिलित हो गए।
  3. उन्होंने 17 वर्ष की आयु में एक कविता प्रतियोगिता में 51 रुपए का पुरस्कार जीता था। यही से उनकी साहित्यिक यात्रा आरंभ हुई थी।
  4. डॉ. रामकुमार वर्मा ने देश ही नहीं विदेशों में भी हिंदी का परचम लहराया।
  5. 1957 में वे मास्को विश्वविद्यालय के अध्यक्ष के रूप में सोवियत संघ की यात्रा पर गए।
  6. 1963 में उन्हें नेपाल के त्रिभुवन विश्वविद्यालय ने शिक्षा सहायक के रूप में आमंत्रित किया।
  7. 1967 में वे श्रीलंका में भारतीय भाषा विभाग के अध्यक्ष के रूप में भेजे गए।
  8. उनके कृतित्व से प्रभावित होकर स्विट्जरलैंड के मूर विश्वविद्यालय ने उन्हें डीलिट की उपाधि से सम्मानित किया।
  9. भारत सरकार ने उन्हें 1965 में पद्म भूषण के राष्ट्रीय अलंकरण से विभूषित किया।
  10. उनकी जन्मशती साहित्य जगत के लिए सृजन का एक पर्व है। इसीलिए पूरे वर्ष भर देश में जगह-जगह उनकी याद और सम्मान में कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।


  • डॉ. रामकुमार वर्मा बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। लेखन की ऐसी कोई विधा नहीं जो उनकी कलम से अछूती रह गई हो। कभी कवि तो कभी एकांकीकार, कभी नाटककार तो कभी संपादक, कभी शोधकर्ता तो कभी साहित्य के इतिहास लेखक, न जाने कितने-कितने रूपों में इस कृतिकार ने हिंदी के साहित्य आकाश को अपनी आभा से चमत्कृत किया। 101 से अधिक कृतियाँ उनकी सृजनशीलता का दस्तावेज़ हैं। कोई उन्हें नाटक सम्राट मानता है तो कोई हिंदी एकांकी का जनक। कोई कहता है आचार्य रामचंद्र शुक्ल के बाद अगर किसी ने प्रमाणिक हिंदी साहित्य का इतिहास लिखा है तो वे डॉ रामकुमार वर्मा ही है। सच तो यह है कि किसी एक व्यक्ति का साहित्य की इतनी विधाओं पर ऐसा अधिकार होना आलोचकों के लिए हैरत का प्रश्न है। महात्मा बुद्धभगवान महावीरअशोकसमुद्र गुप्तचंद्रगुप्त और शिवाजी से लेकर 1857 के प्रथम स्वाधीनता संग्राम के महानायकों तक सभी उनके नाटकों के पात्र रहे हैं। अपने 26 से अधिक नाटकों के माध्यम से वे देशवासियों में भारतीयता, देश प्रेम और इतिहास से प्रेरणा लेने की चेतना भरते रहे हैं। साहित्यकार कमलेश्वर कहते हैं,डॉ. वर्मा ने एकांकी विधा का सृजन करके साहित्य में प्रयोगवाद को बढ़ावा दिया। 

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