प्रदीप कुमार (Pradeep Kumar, 4 जनवरी, 1925 - 27 अक्टूबर, 2001) हिन्दी एवं बंगाली फ़िल्मों के एक प्रसिद्ध अभिनेता थे। हिन्दी सिनेमा में उनको ऐसे अभिनेता के तौर पर याद किया जाता है जिन्होंने 1950 और 60 के दशक में अपने ऐतिहासिक किरदारों के ज़रिये दर्शकों का भरपूर मनोरंजन किया। उस जमाने में फ़िल्मकारों को अपनी फ़िल्मों के लिए जब भी किसी राजा, महाराजा, राजकुमार अथवा नवाब की भूमिका की जरूरत होती थी तो वह प्रदीप कुमार को याद किया जाता था। उनके उत्कृष्ट अभिनय से सजी अनारकली, ताजमहल, बहू बेगम और चित्रलेखा जैसी फ़िल्मों को दर्शक आज भी नहीं भूले हैं। पश्चिम बंगाल में 4 जनवरी, 1925 को एक ब्राह्मण परिवार में प्रदीप कुमार का जन्म हुआ। प्रदीप कुमार बचपन से ही फ़िल्मों में बतौर अभिनेता काम करने का सपना देखा करते थे। इसी सपने को पूरा करने के लिए वह अपने जीवन के शुरूआती दौर में रंगमंच से जुड़े। हांलाकि इस बात के लिए उनके पिताजी राजी नहीं थे। 17 वर्ष की उम्र में प्रदीप कुमार अपने सपने को साकार करने के लिए मुंबई आ गए। मुंबई आने के बाद वह कैमरामैन धीरेन डे के सहायक के तौर पर काम करने लगे। वर्ष 1947 में उनकी मुलाकात निर्देशक देवकी बोस से हुई। देवकी बोस को प्रदीप कुमार में एक उभरता हुआ सितारा दिखाई दिया और उन्होंने अपनी बांग्ला फ़िल्म 'अलखनंदा' में काम करने का मौका दिया। इस फ़िल्म के जरिए प्रदीप कुमार बतौर अभिनेता पहचान बनाने में भले ही सफल नहीं हुए, लेकिन एक अभिनेता के रूप में उन्होंने सिने कैरियर के सफर की शुरूआत कर दी। इस बीच प्रदीप कुमार ने एक और बंगला फ़िल्म 'भूली नाय' में अभिनय किया। फ़िल्म भूली नाय ने बॉक्स ऑफिस पर अपनी सिल्वर जुबली पूरी की। इसके बाद प्रदीप कुमार ने हिंदी फ़िल्म की ओर भी अपना रूख कर लिया।
वर्ष 1946 से वर्ष 1952 तक प्रदीप कुमार फ़िल्म इंडस्ट्री में अपनी जगह बनाने के लिए संघर्ष करते रहे। प्रदीप कुमार में फ़िल्मों में बतौर अभिनेता बनने का नशा कुछ इस कदर छाया हुआ था कि उन्होंने हिंदी और उर्दू भाषा की तालीम हासिल करनी शुरू कर दी।
फ़िल्म अलखनंदा के बाद उन्हें जो भी भूमिका मिली वह उसे स्वीकार करते चले गए। इस बीच उन्होंने कृष्णलीला, स्वामी, विष्णुप्रिया, संध्या बेलार रूपकथा जैसी कई फ़िल्मों में अभिनय किया, लेकिन इनमें से कोई भी फ़िल्म बॉक्स आफिस पर सफल नहीं हुई। वर्ष 1952 में प्रदर्शित फ़िल्म आंनद मठ में प्रदीप कुमार पहली बार मुख्य अभिनेता की भूमिका में दिखाई दिए। हालांकि इस फ़िल्म में पृथ्वीराज कपूरजैसे महान अभिनेता भी थे फिर भी प्रदीप कुमार पृथ्वीराज की उपस्थिति में भी दर्शकों के बीच अपने अभिनय की छाप छोड़ने में कामयाब रहे। इस फ़िल्म की सफलता के बाद प्रदीप कुमार बतौर अभिनेता फ़िल्म इंडस्ट्री में अपनी पहचान बनाने में सफल हो गए।
यादगार फ़िल्में
वर्ष 1956 प्रदीप कुमार के सिने कैरियर का सबसे अहम वर्ष साबित हुआ। इस वर्ष उनकी 10 फ़िल्में प्रदर्शित हुई, जिनमें श्री फरहाद, जागते रहो, दुर्गेश नंदिनी, बंधन, राजनाथ और हीर जैसी फ़िल्में शमिल है। इसके बाद प्रदीप कुमार ने एक झलक (1957), अदालत (1958), आरती (1962), चित्रलेखा (1964), भींगी रात (1965), रात और दिन, बहू बेगम (1967) जैसी कई फ़िल्मों में अपने अभिनय का जौहर दिखाकर दर्शको का भरपूर मनोरजंन किया। अभिनय में एकरूपता से बचने और स्वंय को चरित्र अभिनेता के रूप में भी स्थापित करने के लिए प्रदीप कुमार ने अपने को विभिन्न भूमिकाओं में पेश किया। इस क्रम में वर्ष 1969 में प्रदर्शित अजय विश्वास की सुपरहिट फ़िल्म संबध में उन्होंने चरित्र भूमिका निभाई बावजूद इसके उन्होंने अपने सशक्त अभिनय से दर्शको की वाहवाही लूट ली। इसके बाद प्रदीप कुमार ने महबूब की मेहंदी (1971), समझौता (1973), दो अंजाने (1976), धरमवीर (1977), खट्ठामीठा (1978), क्रांति (1981), रजिया सुल्तान (1983), दुनिया (1984), मेरा धर्म (1986), वारिस (1988) जैसी कई सुपरहिट फ़िल्मों के जरिए दर्शको के दिल पर राज किया।
वर्ष | फ़िल्म | चरित्र | |
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1989 | आखिरी बाज़ी | कोबरा | |
1988 | रुख़सत | ||
1988 | वारिस | किशन सिंह | |
1986 | मेरा धर्म | ||
1985 | ऊँचे लोग | ठाकुर विक्रम सिंह | |
1985 | एक डाकू शहर में | ||
1985 | महा शक्तिमान | ||
1984 | लैला | ||
1984 | पुराना मन्दिर | ठाकुर रणवीर सिंह | |
1983 | रज़िया सुल्तान | ||
1983 | लाल चुनरिया | ||
1982 | चलती का नाम ज़िन्दगी | ||
1981 | क्रांति | शमशेर सिंह | |
1980 | चम्बल की कसम | ||
1980 | आखिरी इंसाफ | ||
1978 | तुम्हारी कसम | ||
1978 | परमात्मा | ||
1978 | खट्टा मीठा | ||
1977 | कलाबाज़ | जी डी सप्रू, सर्कस मालिक | |
1977 | सफेद झूठ | ||
1976 | शंकर शंभु | ||
1976 | दो अनजाने | ||
1975 | चैताली | अविनाश | |
1973 | दूर नहीं मंज़िल | ||
1967 | बहू बेगम | नवाब युसुफ़ | |
1967 | रात और दिन | प्रताप | |
1966 | अफ़साना | ||
1966 | दो दिलों की दास्तान | ||
1965 | भीगी रात | ||
1964 | चित्रलेखा | ||
1963 | मेरी सूरत तेरी आँखें | सुधीर बड़जात्या कुमार | |
1963 | उस्तादों के उस्ताद | ||
1963 | ताजमहल | ||
1962 | राखी | आनन्द | |
1962 | आरती | दीपक | |
1961 | संजोग | ||
1961 | पासपोर्ट | शेखर | |
1960 | महलों के ख़्वाब | ||
1960 | घूंघट | ||
1959 | प्यार की राहें | ||
1958 | पुलिस | ||
1957 | झलक | ||
1957 | फैशन | ||
1957 | गेटवे ऑफ इण्डिया | किशोर | |
1957 | नया ज़माना | ||
1957 | यहूदी की लड़की | ||
1956 | शिरीं फ़रहाद | ||
1956 | जागते रहो | ||
1956 | राज हठ | ||
1956 | एक शोला | ||
1955 | अलबेली | ||
1954 | नागिन | सनातन |
निर्देशक के रूप में
वर्ष | फ़िल्म | |
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1966 | दो दिलों की दास्तान |