संविधान का इतिहास : वित्त, संपत्ति, संविदाएँ और वाद : अध्याय 2- उधार लेना - Study Search Point

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संविधान का इतिहास : वित्त, संपत्ति, संविदाएँ और वाद : अध्याय 2- उधार लेना

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292. भारत सरकार द्वारा उधार लेना -संघ की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार, भारत की संचित निधि की प्रतिभूति पर ऐसी सीमाओं के भीतर, यदि कोई हों, जिन्हें संसद समय-समय पर विधि द्वारा नियत करे, उधार लेने तक और ऐसी सीमाओं के भीतर, यदि कोई हों, जिन्हें इस प्रकार नियत किया जाए, प्रत्याभूति देने तक है।
293. राज्यों द्वारा उधार लेना -(1) इस अनुच्छेद के उपबंधों के अधीन रहते हुए, राज्य की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार उस राज्य की संचित निधि की प्रतिभूति पर ऐसी सीमाओं के भीतर, यदि कोई हों,  जिन्हें ऐसे राज्य का विधान-मंडल समय-समय पर विधि द्वारा नियत करे, भारत के राज्यक्षेत्र के भीतर उधार लेने तक और ऐसी सीमाओं के भीतर, यदि कोई हों, जिन्हें इस प्रकार नियत किया जाए, प्रत्याभूति देने तक है।
(2) भारत सरकार, ऐसी शर्तों के अधीन रहते हुए, जो संसद द्वारा बनाई गई किसी विधि द्वारा या उसके अधीन अधिकथित की जाएँ, किसी राज्य को उधार दे सकेगी या जहाँ तक अनुच्छेद 292 के अधीन नियत किन्हीं सीमाओं का उल्लंघन नहीं होता है वहाँ तक किसी ऐसे राज्य द्वारा लिए गए उधारों के संबंध में प्रत्याभूति दे सकेगी और ऐसे उधार देने के प्रयोजन के लिए अपेक्षित राशियाँ भारत की संचित निधि पर भारित की जाएँगी।
(3) यदि किसी ऐसे उधार का, जो भारत सरकार ने या उसकी पूर्ववर्ती सरकार ने उस राज्य को दिया था अथवा जिसके संबंध में भारत सरकार ने या उसकी पूर्ववर्ती सरकार ने प्रत्याभूति दी थी, कोई भाग अभी भी बकाया है तो वह राज्य, भारत सरकार की सहमति के बिना कोई उधार नहीं ले सकेगा।
(4) खंड (3) के अधीन सहमति उन शर्तों के अधीन, यदि कोई हो, दी जा सकेगी जिन्हें भारत सरकार अधिरोपित करना ठीक समझे।

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