कवि नागार्जुन का जीवन परिचय - Study Search Point

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कवि नागार्जुन का जीवन परिचय

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नागार्जुन ( Nagarjuna,  30 जून1911 - 5 नवंबर1998) प्रगतिवादी विचारधारा के लेखक और कवि हैं। नागार्जुन ने 1945 ई. के आसपास साहित्य सेवा के क्षेत्र में क़दम रखा। शून्यवाद के रूप में नागार्जुन का नाम विशेष उल्लेखनीय है। नागार्जुन का असली नाम 'वैद्यनाथ मिश्र' था। हिन्दी साहित्य में उन्होंने 'नागार्जुन' तथा मैथिली में 'यात्री' उपनाम से रचनाओं का सृजन किया।
30 जून सन् 1911 के दिन ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा का चन्द्रमा हिन्दी काव्य जगत के उस दिवाकर के उदय का साक्षी था, जिसने अपनी फ़क़ीरी और बेबाक़ी से अपनी अनोखी पहचान बनाई। कबीर की पीढ़ी का यह महान कवि नागार्जुन के नाम से जाना गया। मधुबनी ज़िलेके 'सतलखा गाँव' की धरती बाबा नागार्जुन की जन्मभूमि बन कर धन्य हो गई। ‘यात्री’ आपका उपनाम था और यही आपकी प्रवृत्ति की संज्ञा भी थी। परंपरागत प्राचीन पद्धति से संस्कृत की शिक्षा प्राप्त करने वाले बाबा नागार्जुन हिन्दीमैथिलीसंस्कृत तथा बांग्ला मेंकविताएँ लिखते थे। 

मैथिली भाषा में लिखे गए आपके काव्य संग्रह ‘पत्रहीन नग्न गाछ’ के लिए आपको साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। हिन्दी काव्य-मंच पर अपनी सत्यवादिता और लाग-लपेट से रहित कविताएँ लम्बे युग तक गाने के बाद 5 नवम्बरसन् 1998 को ख्वाजा सराय, दरभंगाबिहार में यह रचनाकार हमारे बीच से विदा हो गया। उनके स्वयं कहे अनुसार उनकी 40 राजनीतिक कविताओं का चिरप्रतीक्षित संग्रह ‘विशाखा’ आज भी उपलब्ध नहीं है। संभावना भर की जा सकती है कि कभी छुटफुट रूप में प्रकाशित हो गयी हो, किंतु वह इस रूप में चिह्नित नहीं है। सो कुल मिलाकर तीसरा संग्रह अब भी प्रतीक्षित ही मानना चाहिए। हिंदी में उनकी बहुत-सी काव्य पुस्तकें हैं। यह सर्वविदित है। उनकी प्रमुख रचना-भाषाएं मैथिली और हिंदी ही रही हैं। मैथिली उनकी मातृभाषा है और हिंदी राष्ट्रभाषा के महत्व से उतनी नहीं जितनी उनके सहज स्वाभाविक और कहें तो प्रकृत रचना-भाषा के तौर पर उनके बड़े काव्यकर्म का माध्यम बनी। अबतक प्रकाश में आ सके उनके समस्त लेखन का अनुपात विस्मयकारी रूप से मैथिली में बहुत कम और हिंदी में बहुत अधिक है। अपनी प्रभावान्विति में ‘अकाल और उसके बाद’ कविता में अभिव्यक्त नागार्जुन की करुणा साधारण दुर्भिक्ष के दर्द से बहुत आगे तक की लगती है। 'फटेहाली' महज कोई बौद्धिक प्रदर्शन है। इस पथ को प्रशस्त करने का भी मैथिली-श्रेय यात्री जी को ही है।

कृतियाँ

'युगधारा', खिचडी़', 'विप्‍लव देखा हमने', 'पत्रहीन नग्‍न गाछ', 'प्‍यासी पथराई आँखें', इस गुब्‍बारे की छाया में', 'सतरंगे पंखोंवाली', 'मैं मिलिट्री का बूढा़ घोड़ा' जैसी रचनाओं से आम जनता में चेतना फैलाने वाले नागार्जुन के साहित्‍य पर विमर्श का सारांश था कि बाबा नागार्जुन जनकवि थे और वे अपनी कविताओं में आम लोगों के दर्द को बयाँ करते थे। विचारक हॉब्‍सबाम ने इस सदी को अतिवादों की सदी कहा है। उन्‍होंने कहा कि नागार्जुन का व्‍यक्तित्‍व बीसवीं शताब्‍दी की तमाम महत्‍वपूर्ण घटनाओं से निर्मित हुआ था। वे अपनी रचनाओं के माध्‍यम से शोषणमुक्‍त समाज या यों कहें कि समतामूलक समाज निर्माण के लिए प्रयासरत थे। उनकी विचारधारा यथार्थ जीवन के अन्‍तर्विरोधों को समझने में मदद करती है। वर्ष 1911 इसलिए महत्‍वपूर्ण माना जाता है क्‍योंकि उसी वर्ष शमशेर बहादुर सिंह, केदारनाथ अग्रवाल, फैज एवं नागार्जुन पैदा हुए। उनके संघर्ष, क्रियाकलापों और उपलब्धियों के कारण बीसवीं सदी महत्‍वपूर्ण बनी। इन्‍होंने ग़रीबों के बारे में, जन्‍म देने वाली माँ के बारे में, मज़दूरों के बारे में लिखा। लोकभाषा के विराट उत्‍सव में वे गए और काव्‍य भाषा अर्जित की। लोकभाषा के संपर्क में रहने के कारण इनकी कविताएँ औरों से अलग है। सुप्रसिद्ध कवि आलोक धन्‍वा ने नागार्जुन की रचनाओं को संदर्भित करते हुए कहा कि उनकी कविताओं में आज़ादी की लड़ाई की अंतर्वस्‍तु शामिल है। नागार्जुन के गीतों में काव्य की पीड़ा जिस लयात्मकता के साथ व्यक्त हुई है, वह अन्यत्र कहीं नहीं दिखाई देती। आपने काव्य के साथ-साथ गद्य में भी लेखनी चलाई। आपके अनेक हिन्दीउपन्यास, एक मैथिली उपन्यास तथा संस्कृत भाषा से हिन्दी में अनूदित ग्रंथ भी प्रकाशित हुए। काव्य-जगत को आप एक दर्जन काव्य-संग्रह, दो खण्ड काव्य, दो मैथिली कविता संग्रह तथा एक संस्कृत काव्य ‘धर्मलोक शतकम्’ थाती के रूप में देकर गए। प्रकाशित कृतियों में पहला वर्ग उपन्यासों का है। छः से अधिक उपन्यास, एक दर्जन कविता-संग्रह, दो खण्ड काव्य, दो मैथिली;(हिन्दी में भी अनूदित) कविता-संग्रह, एक मैथिली उपन्यास, एक संस्कृत काव्य "धर्मलोक शतकम" तथा संस्कृत से कुछ अनूदित कृतियों के रचयिता।
कविता-संग्रह - अपने खेत में, युगधारा, सतरंगे पंखों वाली, तालाब की मछलियां, खिचड़ी विपल्व देखा हमने, हजार-हजार बाहों वाली, पुरानी जूतियों का कोरस, तुमने कहा था, आखिर ऐसा क्या कह दिया मैंनेइस गुबार की छाया में, ओम मंत्र, भूल जाओ पुराने सपनेरत्नगर्भ
उपन्यासरतिनाथ की चाचीबलचनमा, बाबा बटेसरनाथ, नयी पौध, वरुण के बेटे, दुखमोचन, उग्रतारा, कुंभीपाक, पारो, आसमान में चाँद तारे।
व्यंग्यअभिनंदन
निबंध संग्रह- अन्न हीनम क्रियानाम
बाल साहित्य - कथा मंजरी भाग-1कथा मंजरी भाग-2मर्यादा पुरुषोत्तमविद्यापति की कहानियाँ
मैथिली रचनाएँ-चित्रा , पत्रहीन नग्न गाछ (कविता-संग्रह), पारो, नवतुरिया (उपन्यास)।
बांग्ला रचनाएँमैं मिलिट्री का पुराना घोड़ा (हिन्दी अनुवाद)
ऐसा क्या कह दिया मैंनेनागार्जुन रचना संचयन

सम्मान और पुरस्कार

नागार्जुन को 1965 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से उनके ऐतिहासिक मैथिली रचना पत्रहीन नग्न गाछ के लिए1969 में नवाजा गया था। उन्हें साहित्य अकादमी ने1994 में साहित्य अकादमी फेलो के रूप में नामांकित कर सम्मानित भी किया था।

3 टिप्‍पणियां:

  1. सर नागार्जुन जी के चरित्र के बारे में कुछ जानते है तो बताये क्योंकि किसी महिला ने उनके मरने के 22 साल बाद आरोप लगाया है ।

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  2. एकदम सही बात है। ये अपने मित्र के यहां जाया करते थे बेटी के समान मित्र की बेटी को अपना शिकार बना डाला। जहां का खाते थे वहीं मित्र घात करके आते थे।

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  3. महाकवि नागार्जुन की कविताओं में राजनीति के साथ साथ जनता की आवाज़ भी थी।

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