विद्युत-यांत्रिक रोटर मशीनों के एक परिवार का नाम : एनिग्मा, - Study Search Point

निरंतर कर्म और प्रयास ही सफलता की कुंजी हैं।

विद्युत-यांत्रिक रोटर मशीनों के एक परिवार का नाम : एनिग्मा,

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एनिग्मा (Enigma) विद्युत-यांत्रिक रोटर मशीनों के एक परिवार का नाम है जो जर्मन सेना द्वारा द्वितीय विश्वयुद्ध के समय गुप्त सन्देशों के कूटलेखन या कूटलेखों के पठन के लिये प्रयुक्त हुई थी। प्रथम एनिग्मा मशीन जर्मनी के इंजीनियर आर्थर सर्बिअस (Arthur Scherbius) द्वारा प्रथम विश्वयुद्ध के समय विकसित की गयी थी। 'एनिग्मा', यूनानी भाषा का शब्द है जिसका अर्थ 'पहेली' (रिडिल) होता है। जासूसी के इस दौर में जानकारी ही सबसे अच्छा बचाव हो सकता है और जासूसी की जानकारी ब्रिटेन की बकिंघम यूनिवर्सिटी से बेहतर कहीं नहीं मिल सकती! यहां इसकी पढ़ाई होती है और अगर आज जेम्स बांड भी होते, तो शायद यहां एक कोर्स जरूर करना चाहते! ब्लेचली पार्क में इलेक्ट्रॉनिक जासूसी की नींव रखी गई थी! दूसरे विश्व युद्ध में नाजी जर्मनी के जासूसों के संदेश एनिग्मा नाम की मशीन में कोड किए जाते थे!
अंग्रेज जासूस ब्लेचली पार्क में इन खुफिया संदेशों का मतलब जानने की कोशिश करते थे! सुरक्षा की पढ़ाई कर रहे ये छात्र अब भी इन पुरानी मशीनों से काफी प्रभावित हैं! एक छात्रा मेरिका जोसेफीडेस बताती हैं, "मुझे लगता है इसी से हमने युद्ध जीता! पता चला की टैंकों और हथियारों के साथ खुफिया तरीके से कैसे युद्ध जीता जा सकता है! वहीं अन्य छात्र सैम गारसिया कहते हैं, "काम तो बहुत बढ़िया किया, हमने, मित्र देशों ने लोकतंत्र की जीत हुई! आज भी हमारे पास कुछ रहस्य हैं और इनकी मदद से हम जीत सकते हैं! सुरक्षा की पढ़ाई कर रहे छात्रों को इस समय काफी फायदा हो रहा है! उद्योग और सरकारी विभागों में खास तौर से सुरक्षा विशेषज्ञों की मांग बढ़ रही है! बकिंघम यूनिवर्सिटी में आधे से ज्यादा छात्र विदेश से आते हैं! 
अमेरिकी एजेंट एडवर्ड स्नोडन यहां भी चर्चा में हैं! बकिंघम यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर एंथनी ग्लीस कहते हैं, "मुझे लगता है कि स्नोडन का हमारे छात्रों की सोच पर बड़ा प्रभाव है! जहां उन्हें वैसे ही शक होता था, स्नोडेन ने उनका शक बढ़ा दिया है! एक तरफ वो छात्र हैं जो जानना चाहते हैं कि यह स्नोडन का मामला क्या था और एक तरफ वह हैं जो पहले से जानते थे कि यह क्या था, क्योंकि वह यही काम कर रहे हैं! अगर उन्हें शक है तो स्नोडेन पर है, खुफिया एजेंसियों पर नहीं! लेकिन खुफिया एजेंसियां आए दिन लोगों की जानकारी इंटरनेट से हासिल करती रहती हैं! ऐसे में क्या सामान्य इंटरनेट यूजर भी शक के दायरे में नहीं आ जाता! सैम गारसिया को ऐसा नहीं लगता, "अगर आपने कुछ गलत नहीं किया है तो डरने की जरूरत नहीं! वह आपको ढूंढेंगे भी नहीं, अगर चाहते हैं तो वह ढूंढ सकते हैं लेकिन अगर आपने कुछ नहीं किया है तो आपको डरने की जरूरत नहीं क्योंकि अगर वह जांच भी करेंगे तो उन्हें कुछ नहीं मिलेगा!

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