चक्रवर्ती राजगोपालाचारी (Chakravarti Rajagopalachari, 10 दिसंबर, 1878 - 28 दिसम्बर, 1972) भारतीय राजनीति के शिखर पुरुष थे जो राजाजी के नाम से भी जाने जाते हैं। राजगोपालाचारी वकील, लेखक, राजनीतिज्ञ और दार्शनिक थे। वे स्वतन्त्र भारत के द्वितीय गवर्नर जनरल और प्रथम भारतीय गवर्नर जनरल थे। अपने अद्भुत और प्रभावशाली व्यक्तित्व के कारण 'राजाजी' के नाम से प्रसिद्ध महान स्वतंत्रता सेनानी, समाज सुधारक, गांधीवादी राजनीतिज्ञ चक्रवर्ती राजगोपालाचारी को आधुनिक भारत के इतिहास का 'चाणक्य' माना जाता है। राजगोपालाचारी जी की बुद्धि चातुर्य और दृढ़ इच्छाशक्ति के कारण जवाहरलाल नेहरू,महात्मा गांधी और सरदार पटेल जैसे अनेक उच्चकोटि के कांग्रेसी नेता भी उनकी प्रशंसा करते नहीं अघाते थे। एक वैष्णव ब्राह्मण परिवार में जन्मे चक्रवर्ती जी के पिता का नाम श्री नलिन चक्रवर्ती था, जो सेलम के न्यायालय में न्यायधीश के पद पर कार्यरत थे। राजगोपालाचारी जी की प्रारम्भिक शिक्षा गांव के ही एक स्कूल से प्राप्त करने के बाद उन्होंने बैंगलोर के सैंट्रल कॉलेज से हाई स्कूल और इंटरमीडिएट की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। इसके बाद मद्रास के प्रेसीडेंसी कॉलेज से बी.ए. और वकालत की परीक्षा उत्तीर्ण की। वकालत की डिग्री पाने के पश्चात वे सेलम में ही वकालत करने लगे। अपनी योग्यता और प्रतिभा के बल पर उनकी गणना वहां के प्रमुख वकीलों में की जाने चक्रवर्ती पढ़ने लिखने में तो तेज थे ही, देशभक्ति और समाज सेवा की भावना भी उनमें स्वाभाविक रूप से विद्यमान थी। जिन दिनों वे वकालत कर रहे थे, उन्हीं दिनों वे स्वामी विवेकानंद जी के विचारों से अत्यंत प्रभावित हुए और वकालत के साथ साथ समाज सुधार के कार्यों में भी सक्रिय रूप से रुचि लेने लगे। उनके समाज सेवी कार्यों से प्रभावित होकर जनता द्वारा उन्हें सेलम की म्यूनिसिपल कॉर्पोरेशन का अध्यक्ष चुन लिया गया। इस पद पर रहते हुए उन्होंने अनेक नागरिक समस्याओं का तो समाधान किया ही, साथ ही तत्कालीन समाज में व्याप्त ऐसी सामाजिक बुराइयों का भी जमकर विरोध किया जो उन्हीं के जैसे हिम्मती व्यक्ति के बस की बात थी। सेलम में पहले सहकारी बैंक की स्थापना का श्रेय भी उन्हें ही जाता है।
वर्ष 1915 में गाँधी जी दक्षिण अफ्रीका से लौट कर भारत आये थे और आते ही देश के स्वतंत्रता संग्राम को गति प्रदान करने में जुट गये थे। चक्रवर्ती भी देश के हालात से अनभिज्ञ नहीं थे, वह वकालत में उत्कर्ष पर थे। 1919 में गाँधी जी ने रॉलेक्ट एक्ट के विरुद्ध सत्याग्रह आन्दोलन प्रारम्भ किया। इसी समय राजगोपालाचारी गाँधी जी के सम्पर्क में आये और उनके राष्ट्रीय आन्दोलन के विचारों से प्रभावित हुए। गाँधी जी ने पहली भेंट में उनकी प्रतिभा को पहचाना और उनसे मद्रास में सत्याग्रह आन्दोलन का नेतृत्व करने का आह्वान किया। उन्होंने पूरे जोश से मद्रास सत्याग्रह आन्दोलन का नेतृत्व किया और गिरफ्तार होकर जेल गये। जेल से छूटते ही चक्रवर्ती ने अपनी वकालत और तमाम सुख सुविधाओं को त्याग दिया और पूर्ण रूप से देश के स्वतंत्रता संग्राम को समर्पित हो गये। सन् 1921 में गाँधी जी ने नमक सत्याग्रह आरंभ किया। इसी वर्ष वह कांग्रेस के सचिव भी चुने गये। इस आन्दोलन के तहत उन्होंने जगजागरण के लिए पदयात्रा की और वेदयासम के सागर तट पर नमक क़ानून का उल्लंघन किया।
1954 में भारतीय राजनीति के चाणक्य कहे जाने वाले राजा जी को 'भारत रत्न' से सम्मानित किया गया। वह विद्वान और अद्भुत लेखन प्रतिभा के धनी थे। जो गहराई और तीखापन उनके बुद्धिचातुर्य में था, वही उनकी लेखनी में भी था। वह तमिल और अंग्रेज़ी के बहुत अच्छे लेखक थे। 'गीता' और 'उपनिषदों' पर उनकी टीकाएं प्रसिद्ध हैं। उनको उनकी पुस्तक 'चक्रवर्ती थरोमगम' पर 'साहित्य अकादमी' द्वारा पुरस्कृत किया गया। उनकी लिखी अनेक कहानियाँ उच्च स्तरीय थीं। 'स्वराज्य' नामक पत्र उनके लेख निरंतर प्रकाशित होते रहते थे। इसके अतिरिक्त नशाबंदी और स्वदेशी वस्तुओं विशेषकर खादी के प्रचार प्रसार में उनका योगदान महत्त्वपूर्ण माना जाता है।
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