ताजमहल (تاج محل) भारत के आगरा शहर में स्थित एक विश्व धरोहर मक़बरा है। इसका निर्माण मुग़ल सम्राट शाहजहाँ ने, अपनी पत्नी मुमताज़ महल की याद में करवाया था। ताजमहल मुग़ल वास्तुकला का उत्कृष्ट नमूना है। इसकी वास्तु शैली फ़ारसी, तुर्क, भारतीय और इस्लामी वास्तुकला के घटकों का अनोखा सम्मिलन है। सन् 1983 में, ताजमहल युनेस्को विश्व धरोहर स्थल बना। इसके साथ ही इसे विश्व धरोहर के सर्वत्र प्रशंसा पाने वाली, अत्युत्तम मानवी कृतियों में से एक बताया गया। ताजमहल को भारत की इस्लामी कला का रत्न भी घोषित किया गया है। साधारणतया देखे गये संगमर्मर की सिल्लियों की बडी- बडी पर्तो से ढंक कर बनाई गई इमारतों की तरह न बनाकर इसका श्वेत गुम्बद एवं टाइल आकार में संगमर्मर से ढंका है। केन्द्र में बना मकबरा अपनी वास्तु श्रेष्ठता में सौन्दर्य के संयोजन का परिचय देते हैं। ताजमहल इमारत समूह की संरचना की खास बात है, कि यह पूर्णतया सममितीय है। इसका निर्माण सन् 1648 के लगभग पूर्ण हुआ था। उस्ताद अहमद लाहौरी को प्रायः इसका प्रधान रूपांकनकर्ता माना जाता है।
ताजमहल के मूल एवं वास्तु
ताजमहल के मूल एवं वास्तु
मक़बरा
ताज महल का केन्द्र बिंदु है, एक वर्गाकार नींव आधार पर बना श्वेत संगमर्मर का मक़बरा। यह एक सममितीय इमारत है, जिसमें एक ईवान यानि अतीव विशाल वक्राकार (मेहराब रूपी) द्वार है। इस इमारत के ऊपर एक वृहत गुम्बद सुशोभित है। अधिकतर मुग़ल मक़बरों जैसे, इसके मूल अवयव फ़ारसी उद्गम से हैं।
मूल - आधार
इसका मूल-आधार एक विशाल बहु-कक्षीय संरचना है। यह प्रधान कक्ष घनाकार है, जिसका प्रत्येक किनारा 55 मीटर है (देखें: तल मानचित्र, दांये)। लम्बे किनारों पर एक भारी-भरकम पिश्ताक, या मेहराबाकार छत वाले कक्ष द्वार हैं। यह ऊपर बने मेहराब वाले छज्जे से सम्मिलित है।
मुख्य मेहराब
मुख्य मेहराब के दोनों ओर,एक के ऊपर दूसरा शैलीमें, दोनों ओर दो-दो अतिरिक्त पिश्ताक़ बने हैं। इसी शैली में, कक्ष के चारों किनारों पर दो-दो पिश्ताक (एक के ऊपर दूसरा) बने हैं। यह रचना इमारत के प्रत्येक ओर पूर्णतया सममितीय है, जो कि इस इमारत को वर्ग के बजाय अष्टकोण बनाती है, परंतु कोने के चारों भुजाएं बाकी चार किनारों से काफी छोटी होने के कारण, इसे वर्गाकार कहना ही उचित होगा। मकबरे के चारों ओर चार मीनारें मूल आधार चौकी के चारों कोनों में, इमारत के दृश्य को एक चौखटे में बांधती प्रतीत होती हैं। मुख्य कक्ष में मुमताज महल एवं शाहजहाँ की नकली कब्रें हैं। ये खूब अलंकृत हैं, एवं इनकी असल निचले तल पर स्थित है।
गुम्बद
मकबरे पर सर्वोच्च शोभायमान संगमर्मर का गुम्बद (देखें बांये), इसका सर्वाधिक शानदार भाग है। इसकी ऊँचाई लगभग इमारत के आधार के बराबर, 35 मीटर है और यह एक 7 मीटर ऊँचे बेलनाकार आधार पर स्थित है। यह अपने आकारानुसार प्रायः प्याज-आकार (अमरूद आकार भी कहा जाता है) का गुम्बद भी कहलाता है। इसका शिखर एक उलटे रखे कमल से अलंकृत है। यह गुम्बद के किनारों को शिखर पर सम्मिलन देता है।
छतरियाँ
गुम्बद के आकार को इसके चार किनारों पर स्थित चार छोटी गुम्बदाकारी छतरियों (देखें दायें) से और बल मिलता है। छतरियों के गुम्बद, मुख्य गुम्बद के आकार की प्रतिलिपियाँ ही हैं, केवल नाप का फर्क है। इनके स्तम्भाकार आधार, छत पर आंतरिक प्रकाश की व्यवस्था हेतु खुले हैं। संगमर्मर के ऊँचे सुसज्जित गुलदस्ते, गुम्बद की ऊँचाई को और बल देते हैं। मुख्य गुम्बद के साथ-साथ ही छतरियों एवं गुलदस्तों पर भी कमलाकार शिखर शोभा देता है। गुम्बद एवं छतरियों के शिखर पर परंपरागत फारसी एवं हिंदू वास्तु कला का प्रसिद्ध घटक एक धात्विक कलश किरीटरूप में शोभायमान है।
किरीट कलश
मुख्य गुम्बद के किरीट पर कलश है! यह शिखर कलश आरंभिक 1800ई० तक स्वर्ण का था और अब यह कांसे का बना है। यह किरीट-कलश फारसी एवं हिंन्दू वास्तु कला के घटकों का एकीकृत संयोजन है। यह हिन्दू मन्दिरों के शिखर पर भी पाया जाता है। इस कलश पर चंद्रमा बना है, जिसकी नोक स्वर्ग की ओर इशारा करती हैं। अपने नियोजन के कारण चन्द्रमा एवं कलश की नोक मिलकर एक त्रिशूल का आकार बनाती हैं, जो कि हिन्दू भगवान शिव का चिह्न है।
मीनारें : - मुख्य आधार के चारो कोनों पर चार विशाल मीनारें (देखें बायें) स्थित हैं। यह प्रत्येक 40 मीटर ऊँची है। यह मीनारें ताजमहल की बनावट की सममितीय प्रवृत्ति दर्शित करतीं हैं। यह मीनारें मस्जिद में अजा़न देने हेतु बनाई जाने वाली मीनारों के समान ही बनाईं गईं हैं। प्रत्येक मीनार दो-दो छज्जों द्वारा तीन समान भागों में बंटी है। मीनार के ऊपर अंतिम छज्जा है, जिस पर मुख्य इमारत के समान ही छतरी बनी हैं। इन पर वही कमलाकार आकृति एवं किरीट कलश भी हैं। इन मीनारों में एक खास बात है, यह चारों बाहर की ओर हलकी सी झुकी हुईं हैं, जिससे कि कभी गिरने की स्थिति में, यह बाहर की ओर ही गिरें, एवं मुख्य इमारत को कोई क्षति न पहुँच सके।
बाहरी अलंकरण
ताजमहल का बाहरी अलंकरण, मुगल वास्तुकला का उत्कृष्टतम उदाहरण हैं। जैसे ही सतह का क्षेत्रफल बदलता है, बडे़ पिश्ताक का क्षेत्र छोटे से अधिक होता है और उसका अलंकरण भी इसी अनुपात में बदलता है। अलंकरण घटक रोगन या गचकारी से अथवा नक्काशी एवं रत्न जड़ कर निर्मित हैं। इस्लाम के मानवतारोपी आकृति के प्रतिबन्ध का पूर्ण पालन किया है। अलंकरण को केवल सुलेखन, निराकार, ज्यामितीय या पादप रूपांकन से ही किया गया है।
ताजमहल में पाई जाने वाले सुलेखन फ्लोरिड थुलुठ लिपि के हैं। ये फारसी लिपिक अमानत खां द्वारा सृजित हैं। यह सुलेख जैस्पर को श्वेत संगमर्मर के फलकों में जड़ कर किया गया है। संगमर्मर के सेनोटैफ पर किया गया कार्य अतीव नाजु़क, कोमल एवं महीन है। ऊँचाई का ध्यान रखा गया है। ऊँचे फलकों पर उसी अनुपात में बडा़ लेखन किया गया है, जिससे कि नीचे से देखने पर टेढा़पन ना प्रतीत हो। पूरे क्षेत्र में कु़रान की आयतें, अलंकरण हेतु प्रयोग हुईं हैं। हाल ही में हुए शोधों से ज्ञात हुआ है, कि अमानत खाँ ने ही उन आयतों का चुनाव भी किया था।
प्रयुक्त सूरा
यहाँ का पाठ्य क़ुरआन में वर्णित, अंतिम निर्णय के विषय में है, एवं इसमें निम्न सूरा की आयतें सम्मिलित हैं :
--सूरा 91 - सूर्य,
--सूरा 112 - विश्वास की शुद्धता,
--सूरा 89 - उषा,
--सूरा 93 - प्रातः प्रकाश,
--सूरा 95 - अंजीर,
--सूरा 94 - सांत्वना,
--सूरा 36 - या सिन,
--सूरा 81 - फोल्डिंग अप,
--सूरा 82 - टूट कर बिखरना,
--सूरा 84 - टुकडे़ होना,
--सूरा 98 - साक्ष्य,
--सूरा 67 - रियासत,
--सूरा 48 - विजय,
--सूरा 77 - वो जो आगे भेजे गए एवं
--सूरा 39 - भीड़
--सूरा 112 - विश्वास की शुद्धता,
--सूरा 89 - उषा,
--सूरा 93 - प्रातः प्रकाश,
--सूरा 95 - अंजीर,
--सूरा 94 - सांत्वना,
--सूरा 36 - या सिन,
--सूरा 81 - फोल्डिंग अप,
--सूरा 82 - टूट कर बिखरना,
--सूरा 84 - टुकडे़ होना,
--सूरा 98 - साक्ष्य,
--सूरा 67 - रियासत,
--सूरा 48 - विजय,
--सूरा 77 - वो जो आगे भेजे गए एवं
--सूरा 39 - भीड़
जैसे ही कोई ताजमहल के द्वार से प्रविष्ट होता है, सुलेख है
“ | हे आत्मा ! तू ईश्वर के पास विश्राम कर। ईश्वर के पास शांति के साथ रहे तथा उसकी परम शांति तुझ पर बरसे। | „ |
अमूर्त प्रारूप प्रयुक्त किए गए हैं, खासकर आधार, मीनारों, द्वार, मस्जिद, जवाब में; और कुछ-कुछ मकबरे की सतह पर भी। बलुआ-पत्थर की इमारत के गुम्बदों एवं तहखानों में, पत्थर की नक्काशी से उत्कीर्ण चित्रकारी द्वारा विस्तृत ज्यामितीय नमूने बना अमूर्त प्रारूप उकेरे गए हैं। यहां हैरिंगबोन शैली में पत्थर जड़ कर संयुक्त हुए घटकों के बीच का स्थान भरा गया है। लाल बलुआ-पत्थर इमारत में श्वेत, एवं श्वेत संगमर्मर में काले या गहरे, जडा़ऊ कार्य किए हुए हैं। संगमर्मर इमारत के गारे-चूने से बने भागों को रंगीन या गहरा रंग किया गया है। इसमें अत्यधिक जटिल ज्यामितीय प्रतिरूप बनाए गए हैं। फर्श एवं गलियारे में विरोधी रंग की टाइलों या गुटकों को टैसेलेशन नमूने में प्रयोग किया गया है। पादप रूपांकन मिलते हैं मकबरे की निचली दीवारों पर। यह श्वेत संगमर्मर के नमूने हैं, जिनमें सजीव बास रिलीफ शैली में पुष्पों एवं बेल-बूटों का सजीव अलंकरण किया गया है। संगमर्मर को खूब चिकना कर और चमका कर महीनतम ब्यौरे को भी निखारा गया है। डैडो साँचे एवं मेहराबों के स्पैन्ड्रल भी पीट्रा ड्यूरा के उच्चस्तरीय रूपांकित हैं। इन्हें लगभग ज्यामितीय बेलों, पुष्पों एवं फलों से सुसज्जित किया गया है। इनमें जडे़ हुए पत्थर हैं - पीत संगमर्मर, जैस्पर, हरिताश्म, जिन्हें भीत-सतह से मिला कर घिसाई की गई है। ताजमहल का आंतरिक कक्ष परंपरागत अलंकरण अवयवों से कहीं परे है। यहाँ जडाऊ कार्य पर्चिनकारी नहीं है, वरन बहुमूल्य पत्थरों एवं रत्नों की लैपिडरी कला है। आंतरिक कक्ष एक अष्टकोण है, जिसके प्रत्येक फलक में प्रवेश-द्वार है, हांलाकि केवल दक्षिण बाग की ओर का प्रवेशद्वार ही प्रयोग होता है। आंतरिक दीवारें लगभग 25 मीटर ऊँची हैं, एवं एक आभासी आंतरिक गुम्बद से ढंकी हैं, जो कि सूर्य के चिन्ह से सजा है। आठ पिश्ताक मेहराब फर्श के स्थान को भूषित करते हैं। बाहरी ओर, प्रत्येक निचले पिश्ताक पर एक दूसरा पिश्ताक लगभग दीवार के मध्य तक जाता है। चार केन्द्रीय ऊपरी मेहराब छज्जा बनाते हैं, एवं हरेक छज्जे की बाहरी खिड़की, एक संगमर्मर की जाली से ढंकी है। छज्जों की खिड़कियों के अलावा, छत पर बनीं छतरियों से ढंके खुले छिद्रों से भी प्रकाश आता है। कक्ष की प्रत्येक दीवार डैडो बास रिलीफ, लैपिडरी एवं परिष्कृत सुलेखन फलकों से सुसज्जित है, जो कि इमारत के बाहरी नमूनों को बारीकी से दिखाती है। आठ संगमर्मर के फलकों से बनी जालियों का अष्टकोण, कब्रों को घेरे हुए है। हरेक फलक की जाली पच्चीकारी के महीन कार्य से गठित है। शेष सतह पर बहुमूल्र पत्थरों एवं रत्नों का अति महीन जडाऊ पच्चीकारी कार्य है, जो कि जोडे. में बेलें, फल एवं फूलों से सज्जित है।
निर्माण इतिहास
ताजमहल परिसीमित आगरा नगर के दक्षिण छोर पर एक छोटे भूमि पठार पर बनाया गया था। शाहजहाँ ने इसके बदले जयपुर के महाराजा जयसिंह को आगरा शहर के मध्य एक वृहत महल दिया था। लगभग तीन एकड़ के क्षेत्र को खोदा गया, एवं उसमें कूडा़ कर्कट भर कर उसे नदी सतह से पचास मीटर ऊँचा बनाया गया, जिससे कि सीलन आदि से बचाव हो पाए। मकबरे के क्षेत्र में, पचास कुँए खोद कर कंकड़-पत्थरों से भरकर नींव स्थान बनाया गया। फिर बांस के परंपरागत पैड़ (स्कैफ्फोल्डिंग) के बजाय, एक बहुत बडा़ ईंटों का, मकबरे समान ही ढाँचा बनाया गया। यह ढाँचा इतना बडा़ था, कि अभियाँत्रिकों के अनुमान से उसे हटाने में ही सालों लग जाते। इसका समाधान यह हुआ, कि शाहजाहाँ के आदेशानुसार स्थानीय किसानों को खुली छूट दी गई कि एक दिन में कोई भी चाहे जितनी ईंटें उठा सकता है और वह ढाँचा रात भर में ही साफ हो गया। सारी निर्माण सामग्री एवं संगमर्मर को नियत स्थान पर पहुँचाने हेतु, एक पंद्रह किलोमीटर लम्बा मिट्टी का ढाल बनाया गया। बीस से तीस बैलों को खास निर्मित गाडि़यों में जोतकर शिलाखण्डों को यहाँ लाया गया था। एक विस्तृत पैड़ एवं बल्ली से बनी, चरखी चलाने की प्रणाली बनाई गई, जिससे कि खण्डों को इच्छित स्थानों पर पहुँचाया गया। नदी से पानी लाने हेतु रहट प्रणाली का प्रयोग किया गया था। उससे पानी ऊपर बने बडे़ टैंक में भरा जाता था। फिर यह तीन गौण टैंकों में भरा जाता था, जहाँ से यह नलियों (पाइपों) द्वारा स्थानों पर पहुँचाया जाता था। आधारशिला एवं मकबरे को निर्मित होने में बारह साल लगे। शेष इमारतों एवं भागों को अगले दस वर्षों में पूर्ण किया गया। इनमें पहले मीनारें, फिर मस्जिद, फिर जवाब एवं अंत में मुख्य द्वार बने। क्योंकि यह समूह, कई अवस्थाओं में बना, इसलिये इसकी निर्माण-समाप्ति तिथि में कई भिन्नताएं हैं। यह इसलिये है, क्योंकि पूर्णता के कई पृथक मत हैं। उदाहरणतः मुख्य मकबरा 1643 में पूर्ण हुआ था, किंतु शेष समूह इमारतें बनती रहीं। इसी प्रकार इसकी निर्माण कीमत में भी भिन्नताएं हैं, क्योंकि इसकी कीमत तय करने में समय के अंतराल से काफी फर्क आ गया है। फिर भी कुल मूल्य लगभग 3 अरब 20 करोड़ रुपए, उस समयानुसार आंका गया है; जो कि वर्तमान में खरबों डॉलर से भी अधिक हो सकता है, यदि वर्तमान मुद्रा में बदला जाए। ताजमहल को सम्पूर्ण भारत एवं एशिया से लाई गई सामग्री से निर्मित किया गया था। 1,000 से अधिक हाथी निर्माण के दौरान यातायात हेतु प्रयोग हुए थे। पराभासी श्वेत संगमर्मर को राजस्थान से लाया गया था, जैस्पर को पंजाब से, हरिताश्म या जेड एवं स्फटिक या क्रिस्टल को चीन से। तिब्बत से फीरोजा़, अफगानिस्तान से लैपिज़ लजू़ली, श्रीलंका से नीलम एवं अरबिया से इंद्रगोप या (कार्नेलियन) लाए गए थे। कुल मिला कर अठ्ठाइस प्रकार के बहुमूल्य पत्थर एवं रत्न श्वेत संगमर्मर में जडे. गए थे। उत्तरी भारत से लगभग बीस हजा़र मज़दूरों की सेना अन्वरत कार्यरत थी। बुखारा से शिल्पकार, सीरिया एवं ईरान से सुलेखन कर्ता, दक्षिण भारत से पच्चीकारी के कारीगर,बलूचिस्तान से पत्थर तराशने एवं काटने वाले कारीगर इनमें शामिल थे। कंगूरे, बुर्जी एवं कलश आदि बनाने वाले, दूसरा जो केवल संगमर्मर पर पुष्प तराश्ता था, इत्यादि सत्ताईस कारीगरों में से कुछ थे, जिन्होंने सृजन इकाई गठित की थी। कुछ खास कारीगर, जो कि ताजमहल के निर्माण में अपना स्थान रखते हैं, वे हैं : -
--मुख्य गुम्बद का अभिकल्पक इस्माइल (ए.का.इस्माइल खाँ), जो कि ऑट्टोमन साम्राज्य का प्रमुख गोलार्ध एवं गुम्बद अभिकल्पक थे।
--फारस के उस्ताद ईसा एवं ईसा मुहम्मद एफेंदी (दोनों ईरान से), जो कि ऑट्टोमन साम्राज्य के कोचा मिमार सिनान आगा द्वारा प्रशिक्षित किये गये थे, इनका बार बार यहाँ के मूर अभिकल्पना में उल्लेख आता है।परंतु इस दावे के पीछे बहुत कम साक्ष्य हैं।
--बेनारुस, फारस (ईरान) से 'पुरु' को पर्यवेक्षण वास्तुकार नियुक्त किया गया
--का़जि़म खान, लाहौर का निवासी, ने ठोस सुवर्ण कलश निर्मित किया।
--चिरंजी लाल, दिल्ली का एक लैपिडरी, प्रधान शिलपी, एवं पच्चीकारक घोषित किया गया था।
--अमानत खाँ, जो कि शिराज़, ईरान से था, मुख्य सुलेखना कर्त्ता था। उसका नाम मुख्य द्वार के सुलेखन के अंत में खुदा
--मुहम्मद हनीफ, राज मिस्त्रियों का पर्यवेक्षक था, साथ ही मीर अब्दुल करीम एवं मुकर्इमत खां, शिराज़, ईरान से; इनके हाथिओं में प्रतिदिन का वित्त एवं प्रबंधन था।
--फारस के उस्ताद ईसा एवं ईसा मुहम्मद एफेंदी (दोनों ईरान से), जो कि ऑट्टोमन साम्राज्य के कोचा मिमार सिनान आगा द्वारा प्रशिक्षित किये गये थे, इनका बार बार यहाँ के मूर अभिकल्पना में उल्लेख आता है।परंतु इस दावे के पीछे बहुत कम साक्ष्य हैं।
--बेनारुस, फारस (ईरान) से 'पुरु' को पर्यवेक्षण वास्तुकार नियुक्त किया गया
--का़जि़म खान, लाहौर का निवासी, ने ठोस सुवर्ण कलश निर्मित किया।
--चिरंजी लाल, दिल्ली का एक लैपिडरी, प्रधान शिलपी, एवं पच्चीकारक घोषित किया गया था।
--अमानत खाँ, जो कि शिराज़, ईरान से था, मुख्य सुलेखना कर्त्ता था। उसका नाम मुख्य द्वार के सुलेखन के अंत में खुदा
--मुहम्मद हनीफ, राज मिस्त्रियों का पर्यवेक्षक था, साथ ही मीर अब्दुल करीम एवं मुकर्इमत खां, शिराज़, ईरान से; इनके हाथिओं में प्रतिदिन का वित्त एवं प्रबंधन था।
ताजमहल के पूरा होने के तुरंत बाद ही, शाहजहाँ को अपने पुत्र औरंगजे़ब द्वारा अपदस्थ कर, आगरा के किले में नज़रबन्द कर दिया गया। शाहजहाँ की मृत्यु के बाद, उसे उसकी पत्नी के बराबर में दफना दिया गया था। अंतिम 19वीं सदी होते होते ताजमहल की हालत काफी जीर्ण-शीर्ण हो चली थी। 1857 के भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान, ताजमहल को ब्रिटिश सैनिकों एवं सरकारी अधिकारियों द्वारा काफी विरुपण सहना पडा़ था। इन्होंने बहुमूल्य पत्थर एवं रत्न, तथा लैपिज़ लजू़ली को खोद कर दीवारों से निकाल लिया था। 19वीं सदी के अंत में ब्रिटिश वाइसरॉय जॉर्ज नैथैनियल कर्ज़न ने एक वृहत प्रत्यावर्तन परियोजना आरंभ की। यह 1908 में पूर्ण हुई। उसने आंतरिक कक्ष में एक बडा़ दीपक या चिराग स्थापित किया, जो काहिरा में स्थित एक मस्जिद जैसा ही है। इसी समय यहाँ के बागों को ब्रिटिश शैली में बदला गया था। वही आज दर्शित हैं। सन् 1942 में, सरकार ने मकबरे के इर्द्-गिर्द, एक मचान सहित पैड़ बल्ली का सुरक्षा कवच तैयार कराया था। यह जर्मन एवं बाद में जापानी हवाई हमले से सुरक्षा प्रदान कर पाए। 1965 एवं 1971 के भारत पाकिस्तान युद्ध के समय भी यही किया गया था, जिससे कि वायु बमवर्षकों को भ्रमित किया जा सके। इसके वर्तमान खतरे वातावरण के प्रदूषण से हैं, जो कि यमुना नदी के तट पर है, एवं अम्ल-वर्षा से, जो कि मथुरा तेल शोधक कारखाने से निकले धुंए के कारण है। इसका सर्वोच्च न्यायालय के निदेशानुसार भी कडा़ विरोध हुआ था। 1983 में ताजमहल को युनेस्को विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया।
प्रतिकृतियाँ
चीन के शेनज़ेन शहर के पश्चिमी भाग में स्थित विंडो ऑफ़ द वर्ल्ड थीम पार्क में ताजमहल की प्रतिकृति बनी है। इसके अलावा ताजमहल से प्रेरित होकर बनी विश्व की अन्य इमारतों में ताजमहल बांग्लादेश,औरंगाबाद, महाराष्ट्र में बीबी का मकबरा, अटलांटिक सिटी, न्यू जर्सी स्थित ट्रम्प ताजमहल और मिल्वाउकी, विस्कज़िन स्थित ट्रिपोली श्राइन टेम्पल हैं। वैसे ब्रिटिश कालीन भारत में ही अंग्रेज़ों ने तत्कालीन राजधानी कलकत्ता में इंग्लैण्ड की तत्कालीन महारानी विक्टोरिया के सम्मान में विक्टोरिया मेमोरियल स्मारक भी बनाया था, जो ताजमहल से काफ़ी हद तक प्रेरित है, किन्तु गोथिक स्थापत्यकला में ढला है।
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