सापेक्षतावाद और आइंस्टाइन - Study Search Point

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सापेक्षतावाद और आइंस्टाइन

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18 वीं तथा 19 वी शताब्दी मे न्यूटन का गुरुत्वाकर्षण सिद्धांत सर्वमान्य सिद्धांत बन चूका था। यूरेनस की खोज तथा ग्रहो की गति और पथ की सफल व्याख्या इसे प्रमाणित करती थी। नेपच्युन के खोजे जाने के पश्चात यह पाया गया था कि इसके पथ मे एक विचलन है जो किसी अज्ञात ग्रह के गुरुत्वाकर्षण से संभव है। इस विचलन आधारित गणना से अज्ञात ग्रह के पथ और स्थिति की गणना की गयी, इसके परिणामो द्वारा प्राप्त स्थान पर यूरेनस खोज निकाला गया था। इन सबके अतिरिक्त यह सिद्धांत तोप से दागे जाने वाले गोले की गति और पथ की गणना मे भी सक्षम था।
यह एक सफल सिद्धांत था, जिसके आधार मे कैलकुलस आधारित गणितीय माडेल था
यह स्थिती 20 वी शताब्दी के प्रारंभ तक रही, जब 1905 -1915 के मध्य मे अलबर्ट आइंस्टाइन ने अपने विशेष और साधारण सापेक्षतावाद के सिद्धांत से भौतिकी की जड़े हिला दी। पहले उन्होने सिद्ध किया कि न्यूटन के तीनो गति के नियम आंशिक रूप से सही है, वे गति के प्रकाशगति तक पहुंचने पर कार्य नही करते है। उसके पश्चात उन्होने न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत को भी आंशिक रूप से सही बताया, यह भी अत्यधिक गुरुत्व वाले क्षेत्रो मे कार्य नही करता है। आइंस्टाइन जानते थे कि न्यूटन के सिद्धांत गतिशील पिंडो की व्याख्या करते है और वे ग्रहो और अन्य आकाशीय पिंन्डो की गति की व्याख्या करने मे सफल रहे है। वहीं पर मैक्सवेल के समीकरण विद्युत-चुंबकीय तरंगों के साथ साथ प्रकाश के व्यवहार की व्याख्या करने मे सफल रहे हैं।  यह दोनो सिद्धांत उस समय भौतिकी के स्तम्भ थे।  लेकिन आइंस्टाइन ने पाया कि ये दोनो सिद्धांत एक दूसरे के विरोध मे है और इन स्तम्भो मे से एक का ध्वस्त होना आवश्यक है। न्यूटन के अनुसार आप प्रकाश से तेज चल सकते है क्योंकि प्रकाश गति मे कोई विशेषता नही है। इसका अर्थ यह है कि जब आप प्रकाश की धारा के बाजू मे दौड लगायेंगे तो प्रकाश धारा को स्थायी रहना चाहीये। यह प्रकाश धारा किसी जमी हुयी धारा के जैसे होगी जिसे आज तक किसी ने देखा नही है। न्यूटन का सिद्धांत सामान्य बुद्धि से मेल नही खाता था। आइन्स्टाइन ने मैक्सवेल के समीकरणो मे एक ऐसी विशेषता खोज निकाली जो मैक्सवेल स्वयं नही जानते थे।आइन्स्टाइन ने पाया कि प्रकाशगति एक स्थिरांक है। आप कितनी ही गति से चले प्रकाश अपनी स्थिर गति से ही आप से दूर जायेगा। यदि आप किसी गेंद को किसी गतिवान कार से फेंकते है तब उस गेंद की गति मे कार की गति जुड जाती है लेकिन प्रकाश के साथ ऐसा नही होता, वह अपनी स्थिर गति से ही आपसे दूर जायेगा। प्रकाश की गति निरिक्षक के सापेक्ष होगी और हमेशा स्थिर होगी। इसी तरह न्यूटन के सिद्धांतो मे समय ब्रह्माण्ड हर स्थान पर समान गति से था। पृथ्वी का एक सेकंड, मंगल पर एक सेकंड के बराबर था. लेकिन आइन्स्टाइन के अनुसार समय की गति स्थानानुसार परिवर्तित होती है, पृथ्वी का एक सेकंड , मंगल के एक सेकंड के बराबर नही है। प्रकाशगति के तुल्य चलने पर समय धीमा हो जाता है, उसी तरह अत्याधिक गुरुत्व वाले क्षेत्रो मे भी वह थम जाता है।
भारी पिंडों द्वारा काल-अंतराल मे निर्मित विकृति
1.बुध की कक्षा : बुध की कक्षा मे न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण सिद्धांत से अनुमानित कक्षा से एक विचलन है। न्यूटन का  गुरुत्वाकर्षण सिद्धांत इसे समझा जा सकता है लेकिन आइंस्टाइन के साधारण सापेक्षतावाद से की गयी कक्षा की गणना और निरीक्षित की गयी कक्षा मे कोई अंतर नही है। दोनो सिद्धांतो मे यह अंतर बहुत कम है लेकिन स्पष्ट है। यह अत्याधिक गुरुत्वाकर्षण वाले क्षेत्र मे न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण सिद्धांत की सीमा दर्शाता है।सापेक्षतावाद के सिद्धांत के अनुसार काल (समय) और अंतराल (अंतरिक्ष) अलग नही है, दोनो एक दूसरे से संबंधित है। काल और अंतराल मिलकर ब्रह्माण्ड मे एक कपड़े जैसी संरचना का निर्माण करते है। पदार्थ के द्रव्यमान के कारण इस काल-अंतराल मे विकृति निर्मित होती है। यह ठीक वैसे ही है जैसे किसी तने हुये कपड़े की चादर पर एक भारी गेंद लुढ़का दी जाये। यह गेंद चादर पर एक विकृति निर्माण करेगी। सूर्य के द्वारा काल-अंतराल की चादर मे मे आयी इस विकृति के कारण ग्रह सूर्य की परिक्रमा करते है। जैसे उपरोक्त  चादर पर कुछ कंचे डालने पर वह भारी गेंद के चारो ओर परिक्रमा करते हुये भारी गेंद की ओर स्पायरल पथ से जायेंगे। न्यूटन के नियमों से यह कहीं से पता नही चलता कि पदार्थ और ऊर्जा एक ही है जो कि अलबर्ट आइंस्टाइन प्रसिद्ध समीकरण से स्पष्ट है। ध्यान दें कि आइंस्टाइन ने न्यूटन को गलत नही साबित किया, उन्होने न्यूटन के सिद्धांतो की सीमा तय की। उन्होने इस सीमा के पश्चात न्यूटन के सिद्धांतो का विस्तार किया। आइंस्टाइन के विशेष तथा साधारण सापेक्षतावाद के सिद्धांत के प्रस्तुति के पश्चात लाखों प्रयोगो ने उन्हे प्रमाणित किया है। रोजाना प्रयोग मे आने वाली जी पी एस प्रणाली इसका एक बेहतरीन उदाहरण है, जीपीएस के उपग्रहो मे लगी घड़ियाँ पृथ्वी की घड़ियाँ से भिन्न गति से चलती है। यह जी पी एस प्रणाली अचूक स्थिती दिखाने मे समर्थ है और इसमे एक सेंटीमीटर की भी गलती नही होती है। इस सिद्धांत द्वारा प्रस्तावित और प्रयोगो द्वारा प्रमाणित कुछ मुख्य उदाहरण :

2. न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण सिद्धांत के विपरीत लेकिन आइंस्टाइन के सापेक्षतावाद के सिद्धांत के अनुसार प्रकाश किरणे अत्याधिक गुरुत्व मे मुड़ जाती है। इसे सूर्यग्रहणो मे देखा जा चुका है, इस प्रभाव के कारण सूर्य के पीछे के तारे सूर्यग्रहण के दौरान देखे जा सकते है। गुरुत्वीय लेंसींग भी इसी का एक उदाहरण है।
3. साधारण सापेक्षतावाद के अनुसार मजबूत गुरुत्वीय क्षेत्र से आते हुये प्रकाश मे लाल विचलन होना चाहिये। यह निरीक्षण मे सही पाया गया है और इसकी मात्रा भी साधारण सापेक्षतावाद द्वारा गणना कीये गये मूल्य के समान है।
आइंस्टाइन का सापेक्षतावाद का सिद्धांत उस समय के ज्ञात मूलभूत बल गुरुत्वाकर्षण तथा विद्युत-चुंबकीय बल की सफल व्याख्या करता था। यह सिद्धांत प्रकाश के व्यवहार, समय के प्रवाह की भी सफल व्याख्या करता था। अधिकतर वैज्ञानिक मानते थे कि अब भौतिकी मे जानने योग्य ज्यादा कुछ शेष नही है।एक सिद्धांत जिसका प्रायोगिक सत्यापन अभी शेष है , वह है गुरुत्वीय तरंगे। विद्युत चुंबकीय क्षेत्र की तरंगे होती है जो ऊर्जा का वहन करती है, इन्ही तरंगो को प्रकाश कहा जाता है। इसी तरह से गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र मे ऊर्जा वहन करने वाली गुरुत्वीय तरंगे होना चाहीये। इन तरंगो को काल-अंतराल की वक्रता मे लहरों के रूप मे समझा जा सकता है, जोकि प्रकाशगति से गति करती हैं। लेकिन 1911 मे रदरफोर्ड द्वारा इलेक्ट्रान की खोज तथा उसके पश्चात प्रोटान, न्यूट्रॉन की खोज के पश्चात क्वांटम सिद्धांत का जन्म हुआ।

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