हरियाणा उत्तर भारत का एक राज्य है जिसकी राजधानी चण्डीगढ़ है। इसकी सीमायें उत्तर में हिमाचल प्रदेश, दक्षिण एवं पश्चिम में राजस्थान से जुड़ी हुई हैं। यमुना नदी इसके उत्तराखण्ड और उत्तर प्रदेश राज्यों के साथ पूर्वी सीमा को परिभाषित करती है। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली हरियाणा से तीन ओर से घिरी हुई है और फलस्वरूप हरियाणा का दक्षिणी क्षेत्र नियोजित विकास के उद्देश्य से राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में शामिल है। यह राज्य वैदिक सभ्यता और सिंधु घाटी सभ्यता का मुख्य निवास स्थान है। इस क्षेत्र में विभिन्न निर्णायक लड़ाइयाँ भी हुई हैं जिसमें भारत का अधिकत्तर इतिहास समाहित है। इसमें महाभारत का महाकाव्य युद्ध भी शामिल है। हिन्दू मतों के अनुसार महाभारत का युद्ध कुरुक्षेत्र में हुआ (इसमें भगवान कृष्ण ने भागवत गीता का वादन किया)। इसके अलावा यहाँ तीन पानीपत की लड़ाइयाँ हुई। ब्रितानी भारत में हरियाणा पंजाब राज्य का अंग था जिसे 1966 में भारत के 17वें राज्य के रूप में पहचान मिली। वर्तमान में खाद्यान और दुध उत्पादन में हरियाणा देश में प्रमुख राज्य है। इस राज्य के निवासियों का प्रमुख व्यवसाय कृषि है। समतल कृषि भूमि निमज्जक कुओं (समर्सिबल पंप) और नहर से सिंचित की जाती है। 1960 के दशक की हरित क्रान्ति में हरियाणा का भारी योगदान रहा जिससे देश खाद्यान सम्पन्न हुआ।
इतिहास और भूगोल
ऐतिहासिक युद्ध भूमि के रूप में हरियाणा को जाना जाता है। पश्चिमोत्तर और मध्य एशियाई क्षेत्रों से हुई घुसपैठों के रास्तें में पड़ने वाले हरियाणा को सिकंदर महान (326 ई.पू.) के समय से अनेक सेनाओं के हमलों का सामना करना पड़ा। यह भारतीय इतिहास की अनेक निर्णायक लड़ाईयों का प्रत्यक्षदर्शी रहा है। इनमें प्रमुख हैं-
- पानीपत की लड़ाइयाँ - 1526 में जब मुग़ल बादशाह बाबर ने इब्राहीम लोदी को हराकर भारत में मुग़ल साम्राज्य की नींव डाली।
- 1556 में जब अफ़ग़ान सेना मुग़ल शहंशाह अकबर की सेना से पराजित हुई।
- 1739 में करनाल की लड़ाई - जब फ़ारस के नादिरशाह ने ध्वस्त होते मुग़ल साम्राज्य को ज़ोरदार शिकस्त दी।
- 1761 में जब अहमदशाह अब्दाली ने मराठा सेना को निर्णायक शिकस्त देकर भारत में ब्रिटिश हुकूमत का रास्ता साफ़ कर दिया।
भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन में हरियाणा के अनेक स्वतंत्रता सेनानियों ने योगदान दिया है जिसमें से प्रमुख हैं- चौधरी देवी लाल · अरुणा आसफ़ अली · बंसीलाल · सुचेता कृपलानी ·
हरियाणा राज्य की स्थापना 1 नवम्बर, 1966 को हुई थी। इसलिये हरियाणा का स्थापना दिवस प्रत्येक वर्ष '1 नवंबर' को मनाया जाता है। सन् 1857 का विद्रोह दबाने के बाद ब्रिटिश शासन के पुन: स्थापित होने पर अंग्रेज़ों ने झज्जर और बहादुरगढ़ के नवाब, बल्लभगढ़ के राजा और रेवाड़ी के राव तुलाराम के क्षेत्र या तो ब्रिटिश शासन में मिला लिए या अंग्रेज़ों ने पटियाला, नाभ और जींद के शासकों को सौंप दिये और इस प्रकार हरियाणा पंजाब प्रांत का भाग बन गया। 1 नवंबर, 1966 को पंजाब प्रांत के पुनर्गठन के पश्चात हरियाणा को पूर्ण राज्य का दर्जा मिला। हरियाणा में दो बड़े भू-क्षेत्र है, राज्य का एक बड़ा हिस्सा समतल जलोढ़ मैदानों से युक्त है और पूर्वोत्तर में तीखे ढ़ाल वाली शिवालिया पहाड़ियां तथा संकरा पहाड़ी क्षेत्र है। समुद्र की सतह 210 मीटर से 270 मीटर ऊंचे मैदानी इलाकों से पानी बहकर एकमात्र बारहमासी नदी यमुना में आता है, यह राज्य की पूर्वी सीमा से होकर बहती है। शिवालिक पहाड़ियों से निकली अनेक मौसमी नदियां मैदानी भागों से गुज़रती है। इनमें सबसे प्रमुख घग्घर (राज्य की उत्तरी सीमा के निकट) नदी है। ऐसा माना जाता है कि कभी यह नदी सिंधु नदी में मिलती थी, जो अब पाकिस्तान में है। इस नदी के निचले क्षेत्र में आर्य-पूर्व सभ्यता के अवशेस मिलते हैं। कृषि की दृष्टि से हरियाणा एक समृद्ध राज्य है और यह केंद्रीय भंडार (अतिरिक्त खाद्यान्न की राष्ट्रीय संग्रहण प्रणाली) में बड़ी मात्रा में गेहूँ और चावल देता है। हरियाणा में 65 प्रतिशत से भी अधिक लोगों की जीविका का आधार कृषि है। राज्य के घरेलू उत्पादन में 26.4 प्रतिशत योगदान कृषि का है। खाद्यान्न की उत्पादन क्षमता, जो के राज्य निर्माण के समय 25.92 लाख टन थी। आज का सकल कृषि उत्पादन इससे कहीं अधिक है। चावल, गेहूं, ज्वार, बाजरा, मक्का, जौ, गन्ना, कपास, दलहन, तिलहन और आलू राज्य की मुख्य फ़सलें हैं। नकदी फ़सलों में गन्ना, कपास, तिलहन औरसब्जियों तथा फलों का उत्पादन अधिक हो रहा है।सूरजमुखी और सोयाबीन, मूंगफली, बागवानी को भी विशेष रूप से प्रोत्साहित किया जा रहा है। राज्य में खेती को बढ़ावा देने की कोशिशें की जा रही हैं। मृदु उर्वरता को बढ़ाने के लिए ढेंचा और मूंग के उत्पादन को भी प्रोत्साहित किया जा रहा है।
हरियाणा के सांस्कृतिक जीवन में राज्य की कृषि अर्थव्यवस्था के विभिन्न अवसरों की लय प्रतिबिंबित होती है और इसमें प्राचीन भारत की परंपराओं व लोककथाओं का भंडार है। हरियाणा की एक विशिष्ट बोली है और उसमें स्थानीय मुहावरों का प्रचलन है। स्थानीय लोकगीत और नृत्य अपने आकर्षक अंदाज़ में राज्य के सांस्कृतिक जीवन को प्रदर्शित करतें हैं। ये ओज से भरे हैं और स्थानीय संस्कृति की विनोदप्रियता से जुड़े हैं। वसंत ॠतु में मौजमस्ती से भरे होली के त्योहार में लोग एक-दूसरे पर गुलाल उड़ाकर और गीला रंग डालकर मनाते हैं, इसमें उम्र या सामाजिक हैसियत का कोई भेद नहीं होता। भगवान कृष्ण के जन्मदिन, जन्माष्टमी का हरियाणा में विशिष्ट धार्मिक महत्त्व है, क्योंकि कुरुक्षेत्र ही वह रणभूमि थी, जहां कृष्ण ने योद्धा अर्जुन को भगवद्गीता (महाभारत का एक हिस्सा) का उपदेश दिया था। हरियाणा की हवेलियां (पारंपरिक पारिवारिक आवास) वास्तुशिल्प की सुंदरता, ख़ासकर उनके द्वारों की संरचना, के लिए जानी जाती हैं। इन हवेलियों के द्वारों का अभिकल्पन और हस्तकौशल ही विविध नहीं, बल्कि इन पर्व विभिन्न विषयों की शृंखला भी विस्मयकारी है। ये हवेलियां हरियाणा की गलियों को मध्ययुगीन स्वरूप और सुंदरता प्रदान करती है। इन भवनों में अनेक चबूतरे होते हैं, जो रिहायशी, सुरक्षा, धार्मिक और अदालती कार्यों के लिए उपयोग में लाए जाते हैं। इन भवनों से इनके स्वामियों की सामाजिक स्थिति का संकेत मिलता है।
पर्यटन स्थल
हरियाणा धार्मिक और ऐतिहासिक इमारतों की दृष्टि से समृध्द है। चाहे मामला कुरुक्षेत्र की पवित्र धरती पर श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को गीता का ज्ञान देने का हो, पानीपत की तीन महत्त्वपूर्ण लड़ाइयों का हो या फिर फ़िरोज़शाह तुग़लक़ द्वारा अपनी प्रेमिका गूजरी के लिए बीहड़ बयांबान जंगल में हिसारे-फिरोजां का निर्माण कर उसमें गूजरी महल बनवाने का हो। यहां के कण-कण में इतिहास बोलता है। राज्य में रूरल टूरिज्म को बढ़ावा की एक ऐतिहासिक पृष्ठभूमि भी है। ब्लू जे (समालखा) स्काईलार्क (पानीपत) चक्रवर्ती झील और ओएसिस (उचाना) पराकीट (पीपली) किंगफिशर (अंबाला) मैगपाई (फ़रीदाबाद) दबचिक (होडल) जंगल बबलर (धारूहेड़ा) रेड बिशप (पंचकुला ब्लू बर्ड) (हिसार) शमा (गुड़गांव) गौरैया (बहादुरगढ़) पिंजौर गार्डन (पिंजौर) दिल्ली के पास सूरजकुंड और बड़खल झील सुल्तानपुर पक्षी विहार (सुल्तानुपर, गुड़गांव) दमदमा (गुड़गांव) चीड़ वन के लिए प्रसिद्ध मोरनी पहाड़ियाँ पर्यटकों की रुचि के कुछ अन्य केंद्र हैं। सूरजकुंड के प्रसिद्ध शिल्प मेले का हर साल फ़रवरी में आयोजन किया जाता है। पिंजौर उत्सव भी प्रतिवर्ष मनाया जाता है।
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