बैंकिंग व्यवस्था : भारत, - Study Search Point

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बैंकिंग व्यवस्था : भारत,

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भारत में संस्थागत बैंकिंग की स्थाई शुरूआत 1806 ई. मे हुई थी। निजी अंशधारित तीन पे्रसीडेंसी बैंकों की स्थापना की गई, जो इस प्रकार हैं-सन 1806 में बैंकआफ बंगाल, सन 1840 में बैंक आफ बांबे तथा सन 1943 में बैंक आफ मद्रास।
भारत सरकार ने सन 1860 में एक संयुक्त पूंजी कंपनी अधिनियम पारित किया जिसके बाद भारत में अनेक संयुक्त पूंजी बैंक स्थापित हो गए। इनमें से प्रमुख बैंक थे-इलाहाबाद बैंक(1865), एलांस बैंक आफ शिमला(1881), अवध कामर्शियल बैंक (1881), पंजाब नेशनल बैंक (1894) और पीपुल्स बैंक आफ इंडिया(1901)।
संयुक्त पूंजी पर आधारित भारतीयों द्वारा संचालित प्रथम बैंक अवध कामर्शियल बैंक था, जिसकी स्थापना 1881 में हुई। 
अन्य वाणिज्यिक बैंक-
1. 19 जुलाई 1969 को 14 व्यावसायिक बैंकों का राष्टï्रीय करण किया गया, जिनकी जमा पूंजी 50 करोड़ रूपए से अधिक थी।
2. 15 अप्रैल 1980 को 6 अन्य वाणिज्यक बैंकों का राष्टï्रीय करण किया गया, जिनकी जमा पूंजी 200 करोड़ रूपए से अधिक थी।
3. 4 सितंबर 1980 को न्यू बैंक आफ इंडिया का पंजाब बैंक में विलय कर दिया गया।
वर्तमान में कुल व्यावसायिक बैंकों की संख्या 27 है जिनमें राष्टरीयकृत व्यावसायिक बैंक हैं और 8 (SBI और समूह) आंशिक रूप से राष्टरीयकृत व्यावसायिक बैंक हैं।
क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक
1. भारत में क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक की शुरूआत 1975 में हुई।
2. वर्तमान में भारत में क्षेत्रीय बैंकों की संख्या 196 है।
3. केलकर समिति की संस्तुतियों के आधार पर 1987 के उपरांत किसी नए क्षेत्रीय बैंक की स्थापना नहीं की गई। 
4. सिक्किम और गोवा में क्षेत्रीय बैंक नहीं हैं।
नाबार्ड- इसकी स्थापना 1982 में हुई। यह वर्तमान में भारत में कृषि एंव ग्रामीण क्षेत्र के विकास से संबंधित शीर्ष वित्तीय संस्था है। यह प्रत्यक्ष ऋण आवंटित नहीं करता है। पहले नावार्ड  का कार्य भारतीय रिजर्व बैंक के द्वारा संचालित होता था। 1995 में नाबार्ड के अंदर ग्रामीण आधारभूत संरचना के विकास के दृष्टिकोण से एक प्रकोष्ठ की स्थापना की गई, जिसका नाम रूरल इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट फंड रखा गया। इस निधि का नाम बदलकर वर्तमान में जय प्रकाश नरायण निधि कर दिया गया। 
बैंकिंग लोकपाल योजनाभारतीय रिजर्व बैंक ने 15 जून 1995 से देश में इस योजना को शुरू किया। जिसमें बैंकों के ग्राहकों की शिकायतों का समाधान करने के लिए ग्राहक प्रहरी नियुक्त करने की व्यवस्था है। अब तक 15 अलग-अलग क्षेत्रों के लिए नियुक्त की जा चुकी है। इस योजना में सभी अनुसूचित बैंक और व्यावसायिक बैंक सम्मिलित हैं, लेकिन क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को इस योजना के दायरे से बाहर रखा गया है।
वर्मा समिति- कमजोर बैंकों की पुर्नसंरचना को ध्यान में रखते हुए 1998 में एम.एस. वर्मा की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया गया है। जिन्होंने अपनी रिपोर्ट 1999 में प्रस्तुत की। समिति ने यूको बैंक, इंडियन बैंक और यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया को कमजोर घोषित किया और पुन:पूंजीकरण की सिफारिश की।
बैंकिंग सुधार- भारतीय अर्थव्यवस्था में 1991 के आर्थिक संकट के उपरान्त बैंकिंग क्षेत्र के सुधार के दृष्टिकोण से जून 1991 में एम. नरसिंहम की अध्यक्षता में नरसिंहम समिति अथवा वित्तीय क्षेत्रीय सुधार समिति की स्थापना की गई। जिसने अपनी संस्तुतियां दिसंबर 1991 में प्रस्तुत की। नरसिंहम समिति की द्वितीय में स्थापना 1998 में हुई, जिसकी संस्तुतियों को अभी लागू करने की प्रक्रिया चल रही है।

गोइपोरिया समिति- बैंकों में ग्राहक सुविधा सुधारने के लिए 1990 में एम.एन. गोइपोरिया की अध्यक्षता में एक समिति का गठन हुआ जिसने 1991 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। इस समिति के सुझाओं पर ध्यान देते हुए बैंकिंग लोकपाल योजना की शुरूआत 15 जून 1995 में की गई।

साभार : J.Josh

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