अंग्रेज़ी भाषा के अखबार' बॉम्बे क्रॉनिकल' के संस्थापक : फिरोज़शाह मेहता, - Study Search Point

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अंग्रेज़ी भाषा के अखबार' बॉम्बे क्रॉनिकल' के संस्थापक : फिरोज़शाह मेहता,

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फिरोज़शाह मेहता (Pherozeshah Mehta, जन्म- 4 अगस्त 1845; मृत्यु- 5 नवम्बर 1915) भारतीय राजनेता, बंबई नगरपालिका के संविधान (चार्टर) के निर्माता तथा अंग्रेज़ी भाषा के अखबार' बॉम्बे क्रॉनिकल' के संस्थापक (1913) थे। 1904 में उन्हें 'नाइट' की उपाधि से विभूषित किया गया।
अपने समय के प्रसिद्ध भारतीय नेता और स्पष्ट वक्ता फिरोज़शाह मेहता का जन्म 4 अगस्त, 1845 ई. को मुम्बई के एक प्रसिद्ध व्यवसायी परिवार में हुआ था। आपने भारत में उच्च शिक्षा प्राप्त की थी। पारसी समाज में एम. ए. पास करने वाले फिरोज़शाह मेहता पहले युवक थे। फ़िरोज़शाह ने चार वर्ष तक इंग्लैड में क़ानून का अध्ययन किया तथा 1868 में वहीं से वकालत (बैरिस्टर) की परीक्षा उत्तीर्ण कर भारत लौटे। मुम्बई के कमिश्नर आर्थर क्रॉफ़र्ड का एक क़ानूनी मामले में बचाव करते हुए उन्होंने स्थानीय शासन के सुधार की आवश्यकता महसूस की और 1872 के 'नगरपालिका अधिनियम' की रूपरेखा तैयार की, जिसके कारण वह 'बंबई स्थानीय शासन के जनक' कहलाए। 1873 में वह इसके आयुक्त नियुक्त हुए और 1884-85 तथा 1905 में अध्यक्ष के रूप में भी कार्य किया। 1886 से बंबई विधान परिषद के सदस्य रहते हुए वह 1893 में गवर्नर-जनरल की सर्वोच्च विधान परिषद के लिए चुने गए। 1890 में उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के छठे अधिवेशन की अध्यक्षता की। 1910 में इंग्लैंड की संक्षिप्त यात्रा के पश्चात वह बंबई विश्वविद्यालय के कुलपति नियुक्त हुए। फिरोज़शाह मेहता बैरिस्टरी की शिक्षा प्राप्त करने के लिए इंग्लैण्ड गए। वहाँ उनका दादाभाई नौरोजी से भी सम्पर्क हुआ। वे वहाँ भारत के पक्ष में आवाज़ उठाने वाली संस्थाओं से भी जुड़े रहे। भारत आकर उन्होंने वकालत आरम्भ की और शीघ्र ही उनकी गणना सफल बैरिस्टरों में होने लगी। उन्होंने 'मुम्बई म्युनिसिपल बोर्ड' के कार्यों में गहरी रुचि ली। उनका नगर में इतना प्रभाव था कि उन्हें ‘मुम्बई का मुकुटहीन राजा’ कहा जाता था। कांग्रेस से उनका सम्बन्ध उसकी स्थापना के समय ही हो गया था। उस समय के अनेक नेताओं की भाँति फिरोज़शाह मेहता भी नरम विचारों के राजनीतिज्ञ थे। वेअंग्रेज़ों के प्रशंसक थे। 1890 ई. में उन्होंने कांग्रेस के कोलकाता अधिवेशन की अध्यक्षता की। इस अवसर पर उन्होंने अपने भाषण में कहा था कि, ‘यदि आप अंग्रेज़ों के सामाजिक, नैतिक, मानसिक और राजनीतिक गुणों को अपनायेंगे तो भारत और ब्रिटेन के बीच सदा अच्छा सम्बन्ध रहेगा।
फिरोज़शाह मेहता शिक्षा पर बहुत ज़ोर देते थे। नौकरशाही को जनता की माँ-बाप समझने की प्रवृत्ति का उन्होंने सदा विरोध किया। वे अपने समय के उन थोड़े से नेताओं में से थे, जिनका जनता और अंग्रेज़ सरकार दोनों सम्मान करते थे। समय-समय पर वे सरकार से भिड़ भी जाते थे। अपने जीवन के अन्तिम दिनों में फिरोज़शाह मेहता ने अंग्रेज़ी दैनिक पत्र ‘बॉम्बे क्रॉनिकल’ का प्रकाशन आरम्भ किया।
Sir Pherozeshah Mehta, KCIE (4 August 1845 – 5 November 1915) was a Parsi Indian political leader, activist, and a leading lawyer of Mumbai (formerly known as Bombay)India, who was knighted by the British Government in India for his service to the law. His political ideology was, as was the case with most of the Indian leaders of his time, moderate. Hence, he was not directly opposed to the British Crown's sovereignty, but only demanded more autonomy for Indians to self-rule.
He became the Municipal commissioner of Bombay Municipality in 1873 and its President four times – 1884, 1885, 1905 and 1911.
He was chosen the president of the Indian National Congress in 1890. Pherozeshah Merwanjee Mehta was born on 4 August 1845 in Bombay (now Mumbai) to a Parsi business family.
Graduating from the Elphinstone College in 1864 he passed the M.A. examination, with honours, six months later, being the first Parsi to have obtained a Master's degree from the University of Mumbai. He later went to England to study law at Lincoln's Inn in London.
In 1868 he returned to India and was admitted to the bar, and soon established a practice for himself in a profession which was till then dominated by British lawyers.
It was during a legal defence of Arthur Crawford that he pointed out the need for reforms in the Bombay municipal government. Later, he drafted the Bombay Municipal Act of 1872, and is thus considered the father of Bombay Municipality. Eventually, Sir Pherozeshah Mehta left his law practice to join politics.
A portrait of Pherozeshah Mehta at the Indian Parliament House, shows his importance in the making of the nation. He was known as The Lion of Bombay. In Mumbai, even today Sir Pherozeshah Mehta is a much revered man, there are roads, halls and law colleges named after him. He is respected as an important inspiration for young Indians of the era, his leadership of India's bar and legal profession, and for laying the foundations of Indian involvement in political activities and inspiring Indians to fight for more self-government.
In Mehta's lifetime, few Indians had discussed or embraced the idea of full political independence from Britain. As one of the few people who espoused involvement of the activity of Indians in politics, he was nicknamed Ferocious Mehta.

Books and references

  • Sir Pherozeshah Mehta, a Political Biography – Homi Mody. New York, Asia Pub. House, 1963.
  • Sir Pherozeshah Mehta – Hormasji Peroshaw Mody. New Delhi, Publications Division, Ministry of Information and Broadcasting (1967, 1963)
  • Life and times of Sir Pherozeshah Mehta – V S Srinivasa Sastri, Bharatiya Vidya Bhavan, 1975.
  • Pherozeshah Mehta : Socio-political ideology – S R Bakshi. New Delhi, Anmol Publications, 1991.
  • Sir Pherozeshah Mehta memorial volume – Godrej N Dotivala. Bombay : Mayor's Fund Committee, 1990.
  • Pherozeshah Mehta : maker of modern India -Nawaz B Mody. Allied Publishers, 1997.
  • Sir Pherozeshah Mehta, a sketch of his life and career. (Spanish) Madras, G.A. Natesan 1916.
  • Some unpublished & later speeches & writings of Sir Pherozeshah Mehta – POO. Jeejeebhoy. Commercial Press, 1918.
  • Ten Indian Biographies, in Hindi – Surendra Sharma; Avadha Upadhyaya; Lakshminidhi Chaturvedi; P S Verma; P N Ojha; Janakosharan Verma; Ganesha Datta Gaur. Prayaga, Hindi Press, 1930.

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