लोनावाला महाराष्ट्र का एक हिल स्टेशन है। इसे सहाद्रि पहाडियों के मणि के नाम से भी जाना जाता है। इसे स्वास्थ्यवर्घक पर्यटक स्थल के रुप में भी जाना जाता है। यह समुद्र तल से 625 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। इसे मुंबई और पूना का प्रवेश द्वार भी माना जाता है। लोनावाला के नजदीक ही बौद्व धर्म से संबंधित'बाजा'तथा'कार्ले'की प्रसिद्ध गुफाएं हैं।
लोनावाला महाराष्ट्र के पश्िचम भाग में स्थित है। यह मुंबई से 106 किलोमीटर दक्षिण में है। यहां का मौसम खुशनुमा होता है। गर्मी यहां अप्रैल से जून महीने के बीच पड़ती है। नवंबर से फरवरी के बीच यहां जाड़े का मौसम होता है। यहां दक्षिण-पश्िचमी मानसून के कारण जून और सितंबर के बीच भारी बारिश होती है।
यहां देखने के लिए काफी कुछ है। आप यहां प्राचीन बौद्ध मंदिर,भव्य किले तथा पहाडियां देख्ा सकते हैं। इसके अलावा यहां पहाड़ पर चढ़ाई का भी मजा लिया जा सकता है। यह लोनावाला से 6 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह यहां का सबसे प्रसिद्ध पिकनिक स्थल है। मानसून के मौसम में सप्तांहत में यहां काफी भीड़-भाड़ रहती है। लेकिन यहां घूमने आने वाले को कुछ सावधानियां बरतने की सलाह दी जाती है क्योंकि इस डैम के पानी का स्तर एकाएक बढ़ जाता है। इस डैम में स्वीमिंग की अनुमति नहीं है।
रेवुड पार्क यह पार्क लोनावाला के मुख्य बाजार के ठीक पीछे स्थित है। यह एक जैविक उद्यान है। इस पार्क के विपरीत दिशा में एक पुराना ईसाई कब्रिस्तान है। इसकी बहुत सी कब्र सौ साल पुरानी है। कुछ कब्रों के नीचे तहखाने भी बने हुए हैं। इन कब्र पर बहुत सुंदर नक्काशी की गई थी। लेकिन लुटेरों ने इन कब्र को लूट लिया। अब स्थानीय लोग इस पार्क को एक पिकनिक स्पॉट के रुप में उपयोग करते हैं।
ड्यूक नोज
इसका नाम एक ब्रिटिश गर्वनर के नाम पर पड़ा। ड्यूक नोज के शिखर को स्थानीय लोग'नागफनी'के नाम से पुकारते हैं। खंडाला स्टेशन से इसके शिखर पर आसानी से पैदल चढ़ा जा सकता है। लेकिन आपको इस पर चढ़ने से पहले अपनी आवश्यकता अनुसार पानी रख लेना चाहिए। इस पहाड़ी के नजदीक ही सौसेज हिल तथा आईएनएस शिवाजी है। सौसेज हिल पर एक छोटा सा जंगल है जोकि पक्षी के विभिन्न प्रजाति के लिए प्रसिद्व है।
इसका नाम एक ब्रिटिश गर्वनर के नाम पर पड़ा। ड्यूक नोज के शिखर को स्थानीय लोग'नागफनी'के नाम से पुकारते हैं। खंडाला स्टेशन से इसके शिखर पर आसानी से पैदल चढ़ा जा सकता है। लेकिन आपको इस पर चढ़ने से पहले अपनी आवश्यकता अनुसार पानी रख लेना चाहिए। इस पहाड़ी के नजदीक ही सौसेज हिल तथा आईएनएस शिवाजी है। सौसेज हिल पर एक छोटा सा जंगल है जोकि पक्षी के विभिन्न प्रजाति के लिए प्रसिद्व है।
लोनावाला से 15 किलोमीटर (पुणे जाने के रास्ते पर)जाने पर आपको पत्थरों को काट कर बनाई गई गुफाएं तथा मंदिर दिख जाएंगे। ये गुफाएं तथा मंदिर बौद्ध धर्म से संबंधित है। लोनावाला से यहां जाने के लिए आप ऑटो या मालावी स्टेशन से लोकल ट्रेन द्वारा जा सकते है। मालावी के दायीं तरफ भज तथा बायीं तरफ कार्ले है। यह मालावी स्टेशन से कुछ ही दूरी पर है जहां आप पैदल या ऑटो द्वारा जा सकते हैं। कार्ले की गुफाएं पत्थरों को काट कर बनाई गई गुफाओं का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है। इस गुफा के स्तम्भ पर बेहतरीन नक्काशी की गई है। इस गुफा का निर्माण प्रथम शताब्दी में हीनयान सम्प्रदाय ने आरंभ करवाया था। बाद में इस गुफा को महायान संप्रदाय ने अपने नियंत्रण में लिया। इस गुफा के मुख्य हाल के बाहर कोली मंदिर है। कार्ले की गुफाओं के विपरीत दिशा में भज की गुफाएं स्थित है। यह मालावी स्टेशन से 3 किलोमीटर की दूरी पर स्िथत है। भज की गुफाओं का निर्माण दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व में हुआ था। यहां की गुफाएं कार्ले की गुफाओं से ज्यादा सुरक्षित अवस्था में है। कार्ले और भज की गुफाओं को घूमने के लिए आप यहां एमटीडीसी के होलीडे रिजॉर्ट(कमरों की संख्या78,टेली: 02114-282230,282064,टैरिफ:700-2,000)में आप ठहर सकते हैं। यहां खाना खाने के लिए इंद्राणी रेस्टोरेंट है। इसमें दक्षिण भारतीय तथा चाइनीज भोजन परोसा जाता है। इसी के बगल से इंद्रायणी नदी बहती है।
लोनावाला के आसपास के किले
लौहगढ़ किला (3410 फीट)
इस किले का नाम लौहगढ़ इसलिए पड़ा क्योंकि इसे अपराजेय किला माना जाता था। यह मालावी स्टेशन से 3 किलोमीटर की दूरी पर स्थित भज गांव में स्थित है। यहां से एक रास्ता लौहगढ़ के किले के लिए जाता है। पहले इस किले का उपयोग बौद्ध भिक्षु करते थे। बाद में इस किले पर मुगलों ने अधिकार कर लिया। इस किले में एक दरगाह है। किले में प्रवेश करते ही इस दरगाह पर नजर पड़ जाती है। इस किले के बायीं ओर पावना झील तथा तिकोना किला है। इससे आगे तुंग किला तथा कोरेगढ किला है। इसके दाहिने ओर वलवन डैम तथा झील है।
लौहगढ़ किला (3410 फीट)
इस किले का नाम लौहगढ़ इसलिए पड़ा क्योंकि इसे अपराजेय किला माना जाता था। यह मालावी स्टेशन से 3 किलोमीटर की दूरी पर स्थित भज गांव में स्थित है। यहां से एक रास्ता लौहगढ़ के किले के लिए जाता है। पहले इस किले का उपयोग बौद्ध भिक्षु करते थे। बाद में इस किले पर मुगलों ने अधिकार कर लिया। इस किले में एक दरगाह है। किले में प्रवेश करते ही इस दरगाह पर नजर पड़ जाती है। इस किले के बायीं ओर पावना झील तथा तिकोना किला है। इससे आगे तुंग किला तथा कोरेगढ किला है। इसके दाहिने ओर वलवन डैम तथा झील है।
विशपुर किला (3565 फीट)यह किला लौहगढ़ किला के विपरीत दिशा में है। यहां जाने के लिए मालावी स्टेशन से पैदल पतन गांव जाना होता है। इस गांव से एक रास्ता विशपुर के किले को जाता है। यह किला लौहगढ़ के किले से ज्यादा बड़ा है। इस किले में यहां के सरदार का आवास अभी भी भग्नावस्था में है।
तिकोना किला (3580 फीट)
लोनावाला से एक रास्ता पावना झील होते हुए तिकोना को जाता है। इसके शिखर पर एक बौद्ध गुफा तथा कुछ जल कुण्ड हैं। जाड़े के मौसम में पावना झील में तिकोना किला का प्रतिबिंब दिखता है।
लोनावाला से एक रास्ता पावना झील होते हुए तिकोना को जाता है। इसके शिखर पर एक बौद्ध गुफा तथा कुछ जल कुण्ड हैं। जाड़े के मौसम में पावना झील में तिकोना किला का प्रतिबिंब दिखता है।
तुंग किला (3525 फीट)
इस किले पर कुछ जल कुण्ड तथा सुरक्षा प्राचीरें हैं। यहां से लौहगढ़,विशपुर तथा तिकोना किला एंव पावना झील का सुंदर नजारा दिखता है। कोरेगढ़ किला भी यहां से ज्यादा दूर नहीं है। लोनावाला से तिकोना किला के लिए बसें चलती हैं।
इस किले पर कुछ जल कुण्ड तथा सुरक्षा प्राचीरें हैं। यहां से लौहगढ़,विशपुर तथा तिकोना किला एंव पावना झील का सुंदर नजारा दिखता है। कोरेगढ़ किला भी यहां से ज्यादा दूर नहीं है। लोनावाला से तिकोना किला के लिए बसें चलती हैं।
झीलें
लोनावाला को पश्िचमी भारत के झीलों का जिला कहा जाता है। इस जिले में कई झीलें हैं। लेकिन यहां,कोई भी झील प्राकृतिक नहीं है। इन झीलों में लोनावाला झील,मानसून झील,तथा वालवान झील प्रमुख है। टाटा कंपनी ने भी यहां अपनी कई झीलें निर्मित की हैं। वह इन झीलों से बिजली उत्पन्न करती है।
लोनावाला को पश्िचमी भारत के झीलों का जिला कहा जाता है। इस जिले में कई झीलें हैं। लेकिन यहां,कोई भी झील प्राकृतिक नहीं है। इन झीलों में लोनावाला झील,मानसून झील,तथा वालवान झील प्रमुख है। टाटा कंपनी ने भी यहां अपनी कई झीलें निर्मित की हैं। वह इन झीलों से बिजली उत्पन्न करती है।
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