संस्कृत भाषा के सबसे महान कवि और नाटककार : कालिदास - Study Search Point

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संस्कृत भाषा के सबसे महान कवि और नाटककार : कालिदास

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कालिदास (Kalidasसंस्कृत भाषा के सबसे महान कवि और नाटककार थे। कालिदास ने भारत की पौराणिक कथाओं और दर्शन को आधार बनाकर रचनाएं की। कलिदास अपनी अलंकार युक्त सुंदर सरल और मधुर भाषा के लिये विशेष रूप से जाने जाते हैं। उनके ऋतु वर्णन अद्वितीय हैं और उनकी उपमाएं बेमिसाल।संगीत उनके साहित्य का प्रमुख अंग है और रस का सृजन करने में उनकी कोई उपमा नहीं।
    

उन्होंने अपने शृंगार रस प्रधान साहित्य में भी साहित्यिक सौन्दर्य के साथ-साथ आदर्शवादी परंपरा और नैतिक मूल्यों का समुचित ध्यान रखा है। उनका नाम अमर है और उनका स्थान वाल्मीकि और व्यास की परम्परा में है। कालिदास शिवके भक्त थे। कालिदास नाम का शाब्दिक अर्थ है, 'काली का सेवक'। महाकवि कालिदास कब हुए और कितने हुए इस पर विवाद होता रहा है। विद्वानों के अनेक मत हैं। 150 वर्ष ईसा पूर्व से 450 ईस्वी तक कालिदास हुए होंगे ऐसा माना जाता है। नये अनुसंधान से ज्ञात हुआ है कि इनका काल गुप्त काल रहा होगा। रामायण और महाभारत जैसे महाकाव्यों की रचना के पश्चात संस्कृत साहित्य के आकाश में अनेक कवि-नक्षत्रों ने अपनी प्रभा प्रकट की, पर नक्षत्र - तारा - ग्रहसंकुला होते हुए भी कालिदास - चन्द्र के द्वारा ही भारतीय साहित्य की परम्परा सचमुच ज्योतिष्मयी कही जा सकती है। माधुर्य और प्रसाद का परम परिपाक, भाव की गम्भीरता तथा रसनिर्झरिणी का अमन्द प्रवाह, पदों की स्निग्धता और वैदिक काव्य परम्परा की महनीयता के साथ-साथ आर्ष काव्य की जीवनदृष्टि और गौरव-इन सबका ललित सन्निवेश कालिदास की कविता में हुआ है।  कालिदास के समय तक भारतीय चिन्तन परिपक्व और विकसित हो चुका था, षड्दर्शन तथा अवैदिक दर्शनों के मत-मतान्तर और सिद्धान्त परिणत रूप में सामने आ चुके थे। दूसरी ओर आख्यान-उपाख्यान और पौराणिक वाङमय का जन-जन में प्रचार था। वैदिक धर्म और दर्शन की पुन: स्थापना का भी अभूतपूर्व समुद्यम उनके समय में या उसके कुछ पहले हो चुका था। ज्योतिष, गणित, आयुर्वेद आदि विभिन्न विद्याओं का भी अच्छा विकास कालिदास के काल तक हो चुका था। 
कविकुल गुरु महाकवि कालिदास की गणना भारत के ही नहीं वरन संसार के सर्वश्रेष्ठ साहित्यकारों में की जाती है। उन्होंने नाट्य, महाकाव्य तथा गीतिकाव्य के क्षेत्र में अपनी अदभुत रचनाशक्ति का प्रदर्शन कर अपनी एक अलग ही पहचान बनाई। जिस कृति के कारण कालिदास को सर्वाधिक प्रसिद्धि मिली, वह है उनका नाटक 'अभिज्ञान शाकुन्तलम' जिसका विश्व की अनेक भाषाओं में अनुवाद हो चुका है। उनके दूसरे नाटक 'विक्रमोर्वशीय' तथा 'मालविकाग्निमित्र' भी उत्कृष्ट नाट्य साहित्य के उदाहरण हैं। उनके केवल दो महाकाव्य उपलब्ध हैं - 'रघुवंश' और 'कुमारसंभव' पर वे ही उनकी कीर्ति पताका फहराने के लिए पर्याप्त हैं।
महाकवि कालिदास चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य के समकालीन माने जाते हैं। रघुवंश में कालिदास ने शूरसेन जनपद, मथुरावृन्दावनगोवर्धन तथा यमुना का उल्लेख किया है। इंदुमती के स्वयंवर में विभिन्न प्रदेशों से आये हुए राजाओं के साथ उन्होंने शूरसेन राज्य के अधिपति सुषेण का भी वर्णन किया है। मगध, अंसु, अवंती, अनूप, कलिंग और अयोध्या के बड़े राजाओं के बीच शूरसेन - नरेश की गणना की गई है। कालिदास ने जिन विशेषणों का प्रयोग सुषेण के लिए किया है उन्हें देखने से ज्ञात होता है कि वह एक प्रतापी शासक था, जिसकी कीर्ति स्वर्ग के देवता भी गाते थे और जिसने अपने शुद्ध आचरण से माता-पिता दोनों के वंशों को प्रकाशित कर दिया था। इसके आगे सुषेण को विधिवत यज्ञकरने वाला, शांत प्रकृति का शासक बताया गया है, जिसके तेज़ से शत्रु लोग घबराते थे। यहाँ मथुरा और यमुना की चर्चा करते हुए कालिदास ने लिखा है कि जब राजा सुषेण अपनी प्रेयसियों के साथ मथुरा में यमुना-विहार करते थे तब यमुना-जल का कृष्णवर्ण गंगाकी उज्ज्वल लहरों-सा प्रतीत होता था !
कालिदास संस्कृत साहित्य और भारतीय प्रतिभा के उज्ज्वल नक्षत्र हैं। कालिदास के जीवनवृत्त के विषय में अनेक मत प्रचलित हैं। कुछ लोग उन्हें बंगाली मानते हैं। कुछ का कहना है, वे कश्मीरी थे। कुछ उन्हें उत्तर प्रदेश का भी बताते हैं। परंतु बहुसंख्यक विद्वानों की धारणा है कि वे मालवा के निवासी और उज्जयिनी के सम्राट विक्रमादित्य के नव-रत्नों में से एक थे। विक्रमादित्य का समय ईसा से 57 वर्ष पहले माना जाता है। जोविक्रमी संवत का आरंभ भी है। इस वर्ष विक्रमादित्य ने भारत पर आक्रमण करने वाले शकों को पराजित किया था। कालिदास के संबंध में यह किंवदंती भी प्रचलित है कि वे पहले निपट मूर्ख थे। कुछ धूर्त पंडितों ने षड्यंत्र करके उनका विवाह विद्योत्तमा नाम की परम विदुषी से करा दिया। पता लगने पर विद्योत्तमा ने कालिदास को घर से निकाल दिया। इस पर दुखी कालिदास ने भगवती की आराधना की और समस्त विद्याओं का ज्ञान अर्जित कर लिया।
कालिदास रचित ग्रंथों की तालिका बहुत लंबी है। पर विद्वानों का मत है कि इस नाम के और भी कवि हुए हैं जिनकी ये रचनाएं हो सकती हैं। विक्रमादित्य के नवरत्न कालिदास की सात रचनाएं प्रसिद्ध है।
इनमें से चार काव्य-ग्रंथ हैं-
  • रघुवंश
  • कुमारसंभव
  • मेघदूत
  • ऋतुसंहार
तीन नाटक हैं-
  • अभिज्ञान शाकुंतलम्
  • मालविकाग्निमित्र
  • विक्रमोर्वशीय
इन रचनाओं के कारण कालिदास की गणना विश्व के सर्वश्रेष्ठ कवियों और नाटककारों में होती है। उनकी रचनाओं का साहित्य के साथ-साथ ऐतिहासिक महत्त्व भी है। संस्कृत साहित्य के 6 काव्य ग्रंथों की गणना सर्वोपरि की जाती है। इनमें अकेले कालिदास के तीन ग्रंथ - रघुवंश, कुमारसंभव और मेघदूत है। ये 'लघुत्रयी' के नाम से भी जाने जाते हैं। शेष तीन में भारवि कृत किरातर्जुनीयमाघ कृत शिशुपाल वध और श्रीहर्ष कृतनैषधीयचरित की रचनाएं आती हैं। इसके अतिरिक्त अनेक अन्य काव्यों के साथ भी कालिदास का नाम जोड़ा जाता रहा है- जैसे श्रृङ्गारतिलक, श्यामलादण्डक आदि। ये काव्य या तो कालिदास नामधारी परवर्ती कवियों ने लिखे अथवा परवर्ती कवियों ने अपना काव्य प्रसिद्ध कराने की इच्छा से उसके साथ कालिदास का नाम जोड़ दिया।
काव्यकला की दृष्टि से कालिदास का 'मेघदूत' अतुलनीय है। इसकी सुन्दर सरस भाषा प्रेम और विरह की अभिव्यक्ति तथा प्रकृति से पाठक मुग्ध और भावभिवोर हो उठते हैं। 'मेघदूत' का भी विश्व की अनेक भाषाओं में अनुवाद हो चुका है। उनका 'ऋतु संहार' प्रत्येक ऋतु के प्रकृति चित्रण के लिए ही लिखा गया है। कालिदास के काल के विषय में काफ़ी मतभेद हैं। पर अब विद्वानों की सहमति से उनका काल प्रथम शताब्दी ई. पू. माना जाता है। इस मान्यता का आधार यह है कि उज्जयिनी के राजा विक्रमादित्य के शासन काल में कालिदास का रचनाकाल सम्बद्ध है।

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