रणबीर राज कपूर (जन्म- 14 दिसंबर, 1924, पेशावर, पाकिस्तान मृत्यु- 2 जून, 1988, नई दिल्ली), हिन्दी फ़िल्म अभिनेता, निर्माता व निर्देशक थे। राज कपूर भारत, मध्य-पूर्व, तत्कालीन सोवियत संघ और चीन में भी अत्यधिक लोकप्रिय हैं। राज कपूर को अभिनय विरासत में ही मिला था।
बतौर निर्माता-निर्देशक राज कपूर अंत तक दर्शकों की पसंद को समझने में कामयाब रहे। 1985 में प्रदर्शित राम तेरी गंगा मैली की कामयाबी से इसे समझा जा सकता है जबकि उस दौर में वीडियो के आगमन ने हिन्दी सिनेमा को काफ़ी नुक़सान पहुँचाया था और बड़ी-बड़ी फ़िल्मों को अपेक्षित कामयाबी नहीं मिल रही थी। आज हमारे बीच में राजकपूर नहीं है लेकिन उनकी सोच और विचार ज़रूर हमारे बीच में हैं, हां इसे समय की मार कहेंगे या दुर्भाग्य, कि आज आर. के. स्टूडियो की हालत बेहद दयनीय है, आर. के. स्टूडियो ने 'आ अब लौट चले' के बाद कोई फ़िल्म नहीं बनायी है लेकिन हां अब राजकपूर की नवासी करीना कपूर ने फ़िर से आर. के. स्टूडियो यानी राजकपूर के सपने को ज़िंदा करने की कोशिश की है। राजकपूर और रणबीर कपूर में एक समानता है। दोनों जिस डायरेक्टर के असिस्टेंट थे, दोनों ने उसी डायरेक्टर की फ़िल्म से एक्टिंग कैरियर की शुरुआत की। सभी जानते हैं कि राजकपूर ने स्कूल की पढ़ाई पूरी नहीं की थी। वे केदार शर्मा के असिस्टेंट रहे और सन् 1944 में उन्हीं की फ़िल्म 'नीलकमल' से बतौर एक्टर दर्शकों के सामने आए। 1947 में उन्होंने आर. के. फ़िल्म्स एंड स्टूडियो की स्थापना की। राज कपूर को सन् 1987 में दादा साहब फाल्के पुरस्कार प्रदान किया गया था। राज कपूर को कला के क्षेत्र में भारत सरकार द्वारा, सन् 1971 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। 2 मई, 1988 को एक पुरस्कार समारोह के दौरान, जिसमें राज कपूर को भारतीय फ़िल्म उद्योग का सर्वोच्च सम्मान 'दादा साहब फाल्के' पुरस्कार प्रदान किया गया, राज कपूर को दमे का भयंकर दौरा पड़ा और वह गिर गए। ज़िंदगी और मौत के बीच वे एक माह तक संघर्ष करते रहे। अंत में 2 जून, 1988 को उनका देहावसान हो गया।
बतौर निर्माता-निर्देशक राज कपूर अंत तक दर्शकों की पसंद को समझने में कामयाब रहे। 1985 में प्रदर्शित राम तेरी गंगा मैली की कामयाबी से इसे समझा जा सकता है जबकि उस दौर में वीडियो के आगमन ने हिन्दी सिनेमा को काफ़ी नुक़सान पहुँचाया था और बड़ी-बड़ी फ़िल्मों को अपेक्षित कामयाबी नहीं मिल रही थी। आज हमारे बीच में राजकपूर नहीं है लेकिन उनकी सोच और विचार ज़रूर हमारे बीच में हैं, हां इसे समय की मार कहेंगे या दुर्भाग्य, कि आज आर. के. स्टूडियो की हालत बेहद दयनीय है, आर. के. स्टूडियो ने 'आ अब लौट चले' के बाद कोई फ़िल्म नहीं बनायी है लेकिन हां अब राजकपूर की नवासी करीना कपूर ने फ़िर से आर. के. स्टूडियो यानी राजकपूर के सपने को ज़िंदा करने की कोशिश की है। राजकपूर और रणबीर कपूर में एक समानता है। दोनों जिस डायरेक्टर के असिस्टेंट थे, दोनों ने उसी डायरेक्टर की फ़िल्म से एक्टिंग कैरियर की शुरुआत की। सभी जानते हैं कि राजकपूर ने स्कूल की पढ़ाई पूरी नहीं की थी। वे केदार शर्मा के असिस्टेंट रहे और सन् 1944 में उन्हीं की फ़िल्म 'नीलकमल' से बतौर एक्टर दर्शकों के सामने आए। 1947 में उन्होंने आर. के. फ़िल्म्स एंड स्टूडियो की स्थापना की। राज कपूर को सन् 1987 में दादा साहब फाल्के पुरस्कार प्रदान किया गया था। राज कपूर को कला के क्षेत्र में भारत सरकार द्वारा, सन् 1971 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। 2 मई, 1988 को एक पुरस्कार समारोह के दौरान, जिसमें राज कपूर को भारतीय फ़िल्म उद्योग का सर्वोच्च सम्मान 'दादा साहब फाल्के' पुरस्कार प्रदान किया गया, राज कपूर को दमे का भयंकर दौरा पड़ा और वह गिर गए। ज़िंदगी और मौत के बीच वे एक माह तक संघर्ष करते रहे। अंत में 2 जून, 1988 को उनका देहावसान हो गया।
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