प्रथम विश्वयुद्ध : 1914 से 1918, और 1917 की रूस की क्रांति.., - Study Search Point

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प्रथम विश्वयुद्ध : 1914 से 1918, और 1917 की रूस की क्रांति..,

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प्रथम विश्वयुद्ध : 1914 से 1918 -
1914 से 1918 के मध्य मुख्यतः यूरोप में व्याप्त इस महायुद्ध को प्रथम विश्व युद्ध कहते हैं। यह महायुद्ध यूरोप, एशिया व अफ्रीका तीन महाद्वीपों और जल, थल तथा आकाश में लड़ा गया। इसमें भाग लेने वाले देशों की संख्या, इसका क्षेत्र (जिसमें यह लड़ा गया) तथा इससे हुई क्षति के अभूतपूर्व आंकड़ों के कारण ही इसे विश्वयुद्ध कहते हैं।
प्रथम विश्वयुद्ध लगभग 52 माह तक चला और उस समय की पीढ़ी के लिए यह जीवन की दृष्टि बदल देने वाला अनुभव था। करीब आधी दुनिया हिंसा की चपेट में चली गई और इस दौरान अनुमानतः एक करोड़ लोगों की जान गई और इससे दोगुने घायल हो गए। इसके अलावा बीमारियों और कुपोषण जैसी घटनाओं से भी लाखों लोग मरे। औद्योगिक क्रांति के कारण सभी बड़े देश ऐसे उपनिवेश चाहते थे जहाँ से वे कच्चा माल पा सकें तथा मशीनों से बनाई हुई वस्तुएँ बेच सकें। इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए सैनिक शक्ति बढ़ाई गई और गुप्त कूटनीतिक संधियाँ की गईं। इससे राष्ट्रों में अविश्वास और वैमनस्य बढ़ा और युद्ध अनिवार्य हो गया। ऑस्ट्रिया के सिंहासन के उत्तराधिकारी आर्चड्युक फर्डिनेंड और उनकी पत्नी का वध इस युद्ध का तात्कालिक कारण था। यह घटना 28 जून 1914, को सेराजेवो में हुई थी। एक मास पश्चात् ऑस्ट्रिया ने सर्बिया के विरुद्ध युद्ध घोषित किया। रूस, फ्रांस और ब्रिटेन ने सर्बिया की सहायता की और जर्मनी ने आस्ट्रिया की। अगस्त में जापान, ब्रिटेन आदि की ओर से और कुछ समय बाद टर्की, जर्मनी की ओर से, युद्ध में शामिल हुए। यह महायुद्ध यूरोप, एशिया व अफ्रीका तीन महाद्वीपों और जल, थल तथा आकाश में लड़ा गया। 
लडाइयाँ -
इस महायुद्ध के अंतर्गत अनेक लड़ाइयाँ हुई। इनमें से टेनेनबर्ग (26 से 31 अगस्त 1914), मार्नं (5 से 10 सितंबर 1914), सरी बइर (Sari Bair) तथा सूवला खाड़ी (6 से 10 अगस्त 1915), वर्दूं (21 फ़रवरी 1916 से 20 अगस्त 1917), आमिऐं (8 से 11 अगस्त 1918), एव वित्तोरिओ बेनेतो (23 से 29 अक्टूबर 1918) इत्यादि की लड़ाइयों को अपेक्षाकृत अधिक महत्व दिया गया है। जर्मनी द्वारा किए गए 1916 के आक्रमणों का प्रधान लक्ष्य बर्दूं था। महाद्वीप स्थित मित्र राष्ट्रों की सेनाओं का विघटन करने के लिए फ्रांस पर आक्रमण करने की योजनानुसार जर्मनी की ओर स 21 फ़रवरी 1916 ई. को बर्दूं युद्धमाला का श्रीगणेश हुआ। नौ जर्मन डिवीज़न ने एक साथ मॉज़ेल (Moselle) नदी के दाहिने किनारे पर आक्रमण किया तथा प्रथम एवं द्वितीय युद्ध मोर्चों पर अधिकार किया। फ्रेंच सेना का ओज जनरल पेतैं (Petain) की अध्यक्षता में इस चुनौती का सामना करने के लिए बढ़ा। जर्मन सेना 26 फ़रवरी को बर्दूं की सीमा से केवल पाँच मील दूर रह गई। कुछ दिनों तक घोर संग्राम हुआ। वर्साय की सन्धि में जर्मनी पर कड़ी शर्तें लादी गईं। इसका बुरा परिणाम द्वितीय विश्वयुद्ध के रूप में प्रकट हुआ और राष्ट्रसंघ की स्थापना के प्रमुख उद्देश्य की पूर्ति न हो सकी।

प्रथम विश्वयुद्ध और भारत -
जब यह युद्ध आरम्‍भ हुआ था उस समय भारत औपनिवेशिक शासन के अधीन था। यह भारतीय सिपाही सम्‍पूर्ण विश्‍व में अलग-अलग लड़ाईयों में लड़े। भारत ने युद्ध के प्रयासों में जनशक्ति और सामग्री दोनों रूप से भरपूर योगदान किया। भारत के सिपाही फ्रांस और बेल्जियम, एडीन, अरब, पूर्व अफ्रीका, गाली पोली, मिस्र, मेसोपेाटामिया, फिलिस्‍तीन, पर्सिया और सालोनिका में बल्कि पूरे विश्‍व में विभिन्‍न लड़ाई के मैदानों में बड़े सम्‍मान के साथ लड़े। गढ़वाल राईफल्स रेजिमेन के दो सिपाहियो को संयु्क्त राज्य का उच्चतम पदक 'विक्टोरिया क्रॉस' भी मिला था।
युद्ध आरम्भ होने के पहले जर्मनों ने पूरी कोशिश की थी कि भारत में ब्रिटेन के विरुद्ध आन्दोलन शुरू किया जा सके। बहुत से लोगों का विचार था कि यदि ब्रिटेन युद्ध में लग गया तो भारत के क्रान्तिकारी इस अवसर का लाभ उठाकर देश से अंग्रेजों को उखाड़ फेंकने में में सफल हो जाएंगे। किन्तु इसके उल्टा भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेताओं का मत था स्वतंत्रता की प्राप्ति के लिए इस समय ब्रिटेन की सहायता की जानी चाहिए। और जब 4 अगस्त को युद्ध आरम्भ हुआ तो ब्रिटेन भारत के नेताओं को अपने पक्ष में कर लिया। रियासतों के राजाओं ने इस युद्ध में दिल खोलकर ब्रिटेन की आर्थिक और सैनिक सहायता की।
कुल 8 लाख भारतीय सैनिक इस युद्ध में लड़े जिसमें कुल 47746 सैनिक मारे गये और 65000 जख्मी हुए। इस युद्ध के कारण भारत की अर्थव्यवस्था लगभग दिवालिया हो गयी थी। भारत के बड़े नेताओं द्वारा इस युद्ध में ब्रिटेन को समर्थन ने ब्रिटिश चिन्तकों को भी चौंका दिया था। भारत के नेताओं को आशा थी कि युद्ध में ब्रिटेन के समर्थन से खुश होकर अंग्रेज भारत को इनाम के रूप में स्वतंत्रता दे देंगे या कम से कम स्वशासन का अधिकार देंगे किन्तु ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। उलटे अंग्रेजों ने जलियाँवाला बाग नरसंहार जैसे घिनौने कृत्य से भारत के मुँह पर तमाचा मारा।

1917 की रूस की क्रांति -
सन 1917 की रूस की क्रांति विश्व इतिहास की सबसे महत्वपूर्ण घटनाओं में से एक है। इसके परिणामस्वरूप रूस से ज़ार के स्वेच्छाचारी शासन का अन्त हुआ तथा रूसी सोवियत संघात्मक समाजवादी गणराज्य (Russian Soviet FederativeSocialist Republic) की स्थापना हुई। यह क्रान्ति दो भागों में हुई थी - मार्च 1917  में, तथा अक्टूबर 1917 में। पहली क्रांति के फलस्वरूप सम्राट को पद-त्याग के लिये विवश होना पड़ा तथा एक अस्थायी सरकार बनी। अक्टूबर की क्रान्ति के फलस्वरूप अस्थायी सरकार को हटाकर बोलसेविक सरकार (कम्युनिस्ट सरकार) की स्थापना की गयी।
1917 की रूसी क्रांति बीसवीं सदी के विश्व इतिहास की एक महत्वपूर्ण घटना रही। 1789 ई. में फ्रांस की राज्यक्रांति ने स्वतंत्रता, समानता और भ्रातृत्व की भावना का प्रचार कर यूरोप के जनजीवन को गहरे स्तर पर प्रभावित किया। रूसी क्रांति की व्यापकता अब तक की सभी राजनीतिक घटनाओं की तुलना में बहुत विस्तृत थी। इसने केवल निरंकुश, एकतंत्री, स्वेच्छाचारी, ज़ारशाही शासन का ही अंत नहीं किया बल्कि कुलीन जमींदारों, सामंतों, पूंजीपतियों आदि की आर्थिक और सामाजिक सत्ता को समाप्त करते हुए विश्व में मजदूर और किसानों की प्रथम सत्ता स्थापित की। मार्क्स द्वारा प्रतिपादित वैज्ञानिक समाजवाद की विचारधारा को मूर्त रूप पहली बार रूसी क्रांति ने प्रदान किया। इस क्रांति ने समाजवादी व्यवस्था को स्थापित कर स्वयं को इस व्यवस्था के जनक के रूप में स्थापित किया।
रूसी क्रान्ति का संक्षिप्त काल-क्रम -
1855 -- ज़ार अलेक्जेंडर द्वितीय के शासन का आरंभ
1861 -- कृषि-दासों की मुक्ति
1874-81 - सरकार-विरोधी आतंकवादी आंदोलन का विकास और सरकारी प्रतिक्रिया
1881 -- क्रांतिकारियों द्वारा अलेक्जेंडर द्वितीय की हत्या और अलेक्जेंडर तृतीय द्वारा उत्तराधिकार ग्रहण
1883 -- प्रथम रूसी मार्क्सवादी समूह का गठन
1894 -- निकोलस द्वितीय के शासन का आरंभ
1998 -- रूसी सामाजिक प्रजातांत्रिक मजदूर दल का पहला सम्मेलन
1900 -- समाजवादी क्रांतिकारी दल की स्थापना
1903 -- रूसी सामाजिक प्रजातांत्रिक मजदूर दल का द्वितीय सम्मेलन ; बोल्शेविकों और मेन्शेविकों के मध्य विभाजन का आरम्भ
1904-05 - रूस-जापान युद्ध ; रूस की पराजय
1905 -- 1905 की रूसी क्रांति
जनवरी - सेंट पीटर्सबर्ग में रक्तिम रविवार
जून - काला सागर स्थित ओडेस्सा पर युद्धपोत पोतेमिकन की चढ़ार्इ
अक्टूबर - आम हड़ताल, सेंट पीटर्सबर्ग सोवियत का गठन, अक्टूबर घोषणा पत्र, राष्ट्रीय संसद (डयूमा) के चुनावों हेतु शाही समझौता
1906 -- प्रथम राष्ट्रीय संसद, प्रधानमंत्री स्टालिपिन (Petr Stolypin), कृषि सुधारों का आरम्भ
1907 -- तृतीय राष्ट्रीय संसद, 1912 तक
1911 -- स्टालिपिन की हत्या
1912 - चतुर्थ राष्ट्रीय संसद, 1917 तक। बोल्शेविक-मेन्शेविक विभाजन पूर्ण
1914 - जर्मनी की रूस के विरुद्ध युद्ध की घोषणा।
1915 - गंभीर पराजयों का सिलसिला, निकोलस द्वितीय द्वारा स्वयं को मुख्य सेनापति घोषित करना, प्रगतिशील गुट का गठन
1916 - अनाज और ईंधन की कमी और मूल्यों में वृद्धि
1917 - हड़तालें, विद्रोह, सड़कों पर प्रदर्शन तथा इसके कारण तानाशाही का पतन

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