देश की न्याय व्यवस्था पर भी सवालिया निशान, - Study Search Point

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देश की न्याय व्यवस्था पर भी सवालिया निशान,

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देश में लगातार बढ़ते अपराध को देखते हुए ऐसा लगता है कि प्रत्येक नागरिक को सुरक्षा और इंसाफ मिलना खासा मुश्किल नजर आता हैं, जिससे देश की न्याय व्यवस्था पर भी सवालिया निशान लगाना लाजमी हैं, अभी हाल ही में 14 दिसंबर रात्रि की एक घटना ने दिल्ली एनसीआर को झकझोर दिया है। उत्तराखंड के निवासी सुनील भट्ट (28 वर्ष ) गुरुग्राम से हरिद्वार जाते समय बदमाश लुटेरों ने अपहरण कर लूट की वारदात को अंजाम देकर सुनील की निर्दयता पूर्वक हत्या कर दी। गुरुग्राम से हरिद्वार जाने के लिए सुनील को एक कैब ड्राइवर ने हरिद्वार जाने की बात कह कर अपनी गाड़ी में बैठा कर लूट की वारदात में उनका पर्श, मोबाइल, रुपये, एटीएम कार्ड तथा एटीएम का पिन लेकर हत्या कर दी, जिसके बाद शव को दिल्ली से लगे महिपालपुर के जंगल में फैंककर फरार हो गये, हत्या के इस मामले में हरियाणा पुलिस की सुरक्षा व्यवस्था पर प्रश्न चिह्न लगा दिया है, हत्या के इस मामले में हरियाणा पुलिस पर कोताही बरतने का आरोप लगा है, वही दिल्ली पुलिस ने मामले को संज्ञान लेते हुए हत्या के इस मामले में लिफाफा गिरोह के चार अपराधियों आरिफ उर्फ़ समीर, निर्मल शर्मा, अजय कुमार और प्रताप सिंह को गिरफ्तार किया है। पुलिस ने इनके पास पर्श, बैग, एटीएम कार्ड बरामद किया है। पुलिस के मुताबिक अब तक पकडे गए ये आरोपी 100 से भी अधिक वारदातों को अंजाम दे चुके हैं।
अब बात ये आती है कि क्या गिरफ्तार चारों अपराधियों को भारतीय न्याय व्यवस्था फांसी की सजा सुनाकर 4 माह की दुधमुही बच्ची जिसके सर से पिता का साया उठ गया और उस सुहागन औरत जिसके मांग का सिंदूर एक साल में ही मिट गया हो, उनको न्याय मिल पायेगा ? या फिर कयासों के दौर चलते रहेंगे, यह बात केवल सुनील भट्ट की मौत  से ही शुरू और न्याय पर ही खत्म नहीं होती ना जाये हमारे देश में ऐसे कितने ही मासूम बच्चों के सर से पिता का साया छिन जाता है, कितने ही माँ की मांग सुनी हो जाती है, आखिर कब हमारी सरकार प्रत्येक नागरिक की सुरक्षा सुनिश्चित कर पायेगी जो लोग अपनी आजीविका के लिए अपने घर परिवार को छोड़कर बाहर जाते है, और इसमें इन्हे अपनी जान भी गवानी पड़ती है, ये किसी भी नागरिक के लिए अच्छी बात नहीं है, कि उसे विश्व के इतने बड़े लोकतांत्रिक देश में अपने हक़ और न्याय के लिए दर-दर भटकना पड़ता हो। हर एक हत्या और बलात्कार की घटना के बाद हम कैंडिल और बैनर मार्च करते है, जैसे कि निर्भया कांड हो या फिर आज का सुनील हत्या कांड जिसमे शाम 05 बजे गुरुग्राम स्थित राजीव चौक से पुलिस कमिश्नर ऑफिस गुरुग्राम तक कैंडिल मार्च किया जायेगा। आप लोग भी इस कैंडिल मार्च में शामिल हो कर इस जघन्य अपराध के लिए इंसाफ की मांग करें। लेकिन हम इससे पहले क्यू सरकार को बाध्य नहीं पाते कि  जिस सरकार को हमने चुना है वो हमारी सुरक्षा की पूरी जिम्मेदारी ले और अगर हमारे साथ कोई अपराध हो तो उसमे न्याय दिलाये ना आश्वासन दिखावा और अपराधियों की गिरफ़्तारी तक ही सीमित रहे, हमें ऐसा लगता है कि कही ना कही न्याय व्यवस्था पर राजनीतिक वोटबैंक भी हावी हैं। इसी तरह से सुनील हत्या प्रकरण मामले में उत्तराखंड सरकार की ओर से अभी तक किसी भी तरह का आश्वासन या सहायता देने के बारे में नहीं कहा गया है। गत वर्षों में देश भर के साथ-साथ दिल्ली एनसीआर में अपराध के मामलों में बढ़ोत्तरी हुई है, इन मामलों में न्याय मिलना तो कोसों दूर, अपराधियों के खिलाफ एफआईआर तक दर्ज नहीं हो पाती, अब आप खुद ही सोच सकते है कि जो पुलिस जनता की सुरक्षा के लिए महीने में तनख्वा लेती है वही अपराधियों को पनाह देती है, वो भी चंद रुपयों के खातिर। अब ऐसे न्याय के पहरेदारों से तो इंसाफ की उम्मीद कम ही की जाती है। जब तक खुद प्रत्येक नागरिक अपने अधिकारों और एक दूसरे के प्रति इंसानियत का पाठ नहीं जानेगा, जब तक हर एक नागरिक दूसरों की मदद के लिए आगे नहीं आता और खुद के स्वार्थ सिद्धि से ऊपर उठ कर नहीं सोचेगा तब तक इन अपराधियों को पनाह मिलती रहेगी। अब सरकार की भी जिम्मेदारी है कि वो अपने कानून व्यवस्था में भी समय की जरूरतों को ध्यान में  रखते हुए इनमे आवश्यक बदलाव लाये जिससे कि अपराधियों को कड़ी से कड़ी सजा मिले और कोई भी अपराध करने से डरे। ऐसा ना हो कि हत्या जैसे अपराध पर ही महज 5-10 साल की सजा हो।अगर असल में किसी को न्याय ही देना चाहते हो तो वो है मौत के बदले मौत।

Note : लेख एक स्वतन्त्र टिपप्णीकार है, जिसमे किसी की भावनाओं को आहात नहीं किया गया है, केवल देश के न्यायकर्ताओं से न्याय की गुहार लगाई हैं।  

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