चन्दन सिंह गढ़वाली (Chandan Singh Garhwali, जन्म: 1891 ई. - मृत्यु: 1 अक्टूबर, 1979) भारत के क्रांतिकारियों में से एक थे। चन्दन सिंह 'गढ़वाल रेजीमेंट' के प्रमुख थे। 'सविनय अवज्ञा आन्दोलन' के दौरान जब उत्तर-पश्चिम सीमा प्रान्त में अब्दुल गफ़्फ़ार ख़ाँ के नेतृत्व में ब्रिटिश विरोधी संघर्ष ज़ोरों पर था, तो उसके दमन हेतु ब्रिटिश सरकार ने चन्दन सिंह की 'गढ़वाल रेजीमेंट' को नियुक्त किया। चन्दन सिंह ने मेसोपोटामिया और फ्राँस में कार्यवाही देखी।
उन्होंने 1921 तक उत्तर पश्चिमी प्रान्त की देख-रेख की। चन्दन सिंह में राष्ट्रीय भावना भी कूट-कूट कर भरी थी। उनकी इस देश भक्ति का प्रमाण 1930 के 'नमक सत्याग्रह आन्दोलन' में देखने को मिला। चन्दन सिंह की बटालियन '218वीं रॉयल गढ़वाल राइफल्स'पेशावर पर तैनात कर दी गयी थी। 23 अप्रैल को कैप्टन रिकेट अपने 72 सैनिकों के साथ पेशावर के क़िस्सा ख़ान क्षेत्र तक फैल गये। निहत्थे पठानों की दुकानों को घेर लिया गया। कैप्टन रिकेट ने गढ़वालियों पर गोली चलाने का आदेश दिया। चन्दन सिंह ने रिकेट के इस आदेश पर दख़ल दिया और चिल्लाकर कहा कि- "गढ़वाली गोली नहीं चलाएँगें"। गढ़वालियों ने चन्दन सिंह के आदेश का पालन किया, जिस पर उन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया। चन्दन सिंह को आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई गई। सज़ा पूरी करने के बाद चन्दन सिंह को 1941 में रिहा कर दिया गया उन्होंने 1942 के 'भारत छोड़ो आन्दोलन' में हिस्सा लिया। पेशावर काण्ड के नायक चन्द्र सिंह गढ़वाली लम्बी क़ैद काटने के बाद गांधी जी के आश्रम में रहने गए! साथ में भार्या भी थी , जो शादी के बाद कभी भी पति के संसर्ग का लाभ न ले सकी थी! गांधी के आश्रम में ग्यारह व्रतों में से ब्रह्मचर्य का प्रमुख स्थान था! वह स्वयं भी पैंतीस साल की वय में ब्रह्मचर्य का संकल्प ले चुके थे , और अपनी पत्नी को बा ( माँ) कह कर पुकारते थे! विवाहित आश्रम वासी भी वहां भाई - बहन की तरह रहते थे! प्रयोग धर्मी महात्मा की यह अजब सनक थी! वह अपने मंझले पुत्र मणि लाल को ब्रह्मचर्य खंडन के अपराध में पैंतीस साल तक अविवाहित रहने की कड़ी सज़ा दे चुके थे! भारत की स्वतन्त्रता के पश्चात चन्दन सिंह कम्युनिस्ट बन गये। उन्हें 1948 में जेल हुई। अपनी रिहाई के पश्चात उन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन आम जनता की सेवा में बिता दिया।

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