प्रसिद्ध हिन्दी जनकवि : आलोक धन्वा - Study Search Point

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प्रसिद्ध हिन्दी जनकवि : आलोक धन्वा

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आलोक धन्वा ( Alok Dhanwa, जन्म: 2 जुलाई1948 मुंगेरबिहार) प्रसिद्ध हिन्दी जनकवि हैं। आलोक धन्वा हिन्दी के उन बड़े कवियों में हैं, जिन्होंने 70 के दशक में कविता को एक नई पहचान दी। उनकी गोली दागो पोस्टर , जनता का आदमी , कपड़े के जूते और ब्रूनों की बेटियाँ जैसी कविताएँ बहुचर्चित रही है। ‘दुनिया रोज़ बनती है’ उनका बहुचर्चित कविता संग्रह है। जनकवि "आलोक धन्वा" नई पीढ़ी के लिए एक हस्ताक्षर हैं।

इस जनकवि ने जनता की आवाज़ में जनता के लिए सृजन कार्य किया है। "भागी हुई लड़कियां", जिलाधीश, गोली दागो पोस्टर सरीखी कई प्रासंगिक रचनाएं इनकी पूंजी हैं। सहज और सुलभ दो शब्द इनके व्यक्तित्व की पहचान हैं। हर नुक्कड़ नाटक में धन्वा उपस्थित होते हैं। केवल उपस्थिति नहीं उसे बल भी देते हैं। इस जनकवि के लिए कई बड़े मंच दोनों हाथ खोल कर स्वागत करते हैं। हालांकि बकौल धन्वा उन्हें जनता के मंच पर रहना ही बेहतर लगता है। सलीके से फक्कड़ता को अपने साथ रखने वाले आलोक धन्वा बेहद संवेदनशील हैं।
कविता-संग्रह
  • दुनिया रोज़ बनती है

नई कविताएँ
  • चेन्नई में कोयल
  • ओस
  • फूलों से भरी डाल
  • बारिश
  • सवाल ज़्यादा है
  • रात
  • उड़ानें
  • श्रृंगार
  • रेशमा
  • भूल
  • पाने की लड़ाई
  • मुलाक़ातें
  • आम के बाग़
  • गाय और बछड़ा
  • नन्हीं बुलबुल के तराने

एक अरसे के बाद महात्मा गाँधी अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय की पत्रिका ‘बहुबचन’ में उनकी चार नई कविताएँ सामने आईं। इन कविताओं के छपने के बाद हिंदी जगत में इनका व्यापक स्वागत हुआ है। 
  1. पहल सम्मान
  2. नागार्जुन सम्मान
  3. फ़िराक गोरखपुरी सम्मान
  4. गिरिजा कुमार माथुर सम्मान-नई दिल्ली
  5. भवानी प्रसाद मिश्र स्मृति सम्मान

पटना निवासी आलोक धन्वा इन दिनों महात्मा गाँधी अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय, वर्धा में कार्यरत हैं।

هناك تعليقان (2):

  1. Sir base shali and sahityik visesta aur rachnaye bhi likhar dijiye

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  2. Sir base shali and sahityik visesta aur rachnaye bhi likhar dijiye

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